SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम-३/ देव/१५८ ७५ शेष वेणुदेव से महाघोष पर्यन्त स्थानपद के अनुसार कहना । परिषद् के विषय में भिन्नता है - दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषद् धरणेन्द्र की तरह और उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की परिषद भूतानन्द की तरह है । परिषदों, देव-देवियों की संख्या तथा स्थिति भी उसी तरह जानना | [१५९] हे भगवन् ! वानव्यन्तर देवों के भवन कहाँ हैं । स्थानपद के समान कहना यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विचरते हैं । हे भगवन् ! पिशाचदेवों के भवन कहाँ कहे गये हैं । स्थानपद समान जानना यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं । वहाँ काल और महाकाल नाम के दो पिचाशकुमारराज रहते हैं यावत् विचरते हैं । हे भगवन् दक्षिण दिशा के पिशाचकुमारों के भवन इत्यादि कथन कर लेना यावत् वहाँ महर्द्धिक पिशाचकुमार इन्द्र पिशाचकुमारराज रहते हैं यावत् भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं । हे भगवन् ! पिशाचकुमारेन्द्र पिशाचकुमारराज काल की कितनी परिषदाएँ है ? गौतम ! तीन, ईशा, त्रुटिता और दृढरथा । आभ्यन्तर परिषद् ईशा कहलाती है । मध्यम परिषद् त्रुटिता है और बाह्य परिषद् दृढरथा कहलाती है । गौतम ! पिशाचकुमारेन्द्र पिशाचराज काल की आभ्यन्तर परिषद् में आठ हजार, मध्यम परिषद् में दस हजार और बाह्य परिषद् में बारह हजार देव हैं । आभ्यन्तर परिषदा में एक सौ देवियाँ हैं, मध्यम परिषदा में एक सौ और बाह्य परिषदा में भी एक सौ देवियाँ हैं । हे गौतम! पिशाचकुमारेन्द्र पिशाचराज काल की आभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति आधे पल्योपम की है, मध्यमपरिषद् के देवों की देशोन आधा पल्योपम और बाह्यपरिषद् के देवों की स्थिति कुछ अधिक पाव पल्योपम की है । आभ्यन्तरपरिषद् की देवियों की स्थिति कुछ अधिक पावपल्योपम, मध्यमपरिषद् की देवियों की स्थिति पाव पल्योपम और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति देशोन पाव पल्योपम की है । परिषदों का अर्थ आदि कथन चमरेन्द्र की तरह कहना । इसी प्रकार उत्तर दिशा के वानव्यन्तरों के विषय में भी कहना उक्त सब कथन गीतयश नामक गन्धर्वइन्द्र पर्यन्त कहना । [१६०] हे भगवन् ! ज्योतिष्क देवों के विमान कहाँ हैं । ज्योतिष्क देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! द्वीपसमुद्रों से ऊपर और इस रत्नप्रभापृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे योजन ऊपर जाने पर एक सौ दस योजन प्रमाण ऊचाईरूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिष्क देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं । वे विमान आधे कपीठ के आकार के हैं- इत्यादि वर्णन स्थानपद के समान कहना यावत् वहां ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य दो इन्द्र रहते हैं जो महर्द्धिक यावत् दिव्यभोगों का उपभोग करते हुए विचर हैं । हे भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज सूर्य की कितनी परिषदाएँ हैं ? गौतम ! तीन, तुंबा, त्रुटिता और प्रेत्या । आभ्यन्तर परिषदा का नाम तुंबा है, मध्यम परिषदा का नाम त्रुटिता है और बाह्य परिषद् का नाम प्रेत्या है । शेष वर्णन काल इन्द्र की तरह जानना । उनका परिमाण और स्थिति भी वैसी ही जानना चाहिए । परिषद् का अर्थ चमरेन्द्र की तरह जानना । सूर्य की वक्तव्यता अनुसार चन्द्र की भी वक्तव्यता जानना । प्रतिपत्ति - ३ " द्वीपसमुद्र" [१६१] हे भगवन् ! द्वीप समुद्र कहां अवस्थित हैं ? द्वीपसमुद्र कितने हैं ? वे
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy