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________________ जीवाजीवाभिगम-३/नैर.-२/१०४ ५१ वाले अधिक हैं और कृष्णलेश्या वाले थोड़े हैं । तमःप्रभा में एक कृष्णलेश्या है । सातवीं पृथ्वी में एक परमकृष्णलेश्या है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! तीनों हैं । इसी प्रकार सप्तमपृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे निश्चय से तीन ज्ञान वाले हैं-आभिनिबोधिज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी । जो अज्ञानी हैं उनमें कोई दो अज्ञान वाले हैं और कोई तीन अज्ञान वाले हैं । जो दो अज्ञान वाले हैं वे नियम से मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी हैं और जो तीन अज्ञान वाले हैं वे नियम से मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं । शेष शर्कराप्रभा आदि पृथ्वियों के नारक ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं वे तीनों ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे तीनों अज्ञानवाले हैं । सप्तमपृथ्वी तक के नारकों के लिए ऐसा ही कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक मनयोग वाले हैं, वचनयोग वाले हैं या काययोग वाले हैं ? गौतम ! तीनों योग वाले हैं । सप्तमपृथ्वी तक ऐसा ही कहना। हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारक साकार उपयोग वाले हैं या अनाकार उपयोग वाले हैं ? गौतम ! दोनो है । सप्तमपृथ्वी तक ऐसा ही कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक अवधि से कितना क्षेत्र जानते हैं, देखते हैं ? गौतम ! जघन्य से साढ़े तीन कोस, उत्कृष्ट से चार कोस क्षेत्र को जानते हैं, देखते हैं । शर्कराप्रभा के नैरयिक जघन्य तीन कोस, उत्कर्ष से साढ़ तीन कोस जानते-देखते हैं । इस प्रकार आधा-आधा कोस घटाकर कहना यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक जघन्य आधा कोस और उत्कर्ष से एक कोस क्षेत्र जानतेदेखते हैं । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के कितने समुद्घात हैं ? गौतम ! चारवेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात, मारणांतिकसमुद्घात और वैक्रियसमुद्घात । ऐसा ही सप्तमपृथ्वी तक कहना । [१०५] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं । गौतम ! असत्कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्यपुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो सकती है । इसी तरह सप्तमपृथ्वी तक के नैरयिकों के सम्बन्ध में भी जानना । हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक क्या एक या बहुत से रूप बनाने में समर्थ हैं ? गौतम ! वे एक रूप भी बना सकते हैं और बहुत रूप भी बना सकते हैं । एक रूप बनाते हुए वे एक मुद्गर रूप बनाने में समर्थ हैं, इसी प्रकार एक भुसंडी, करवत, तलवार, शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, बाण, भाला, तोमर, शूल, लकुट और भिण्डमाल बनाते हैं और बहुत रूप बनाते हुए बहुत से मुद्गर भुसंढी यावत् भिण्डमाल बनाते हैं । इन बहुत शस्त्र रूपों की विकुर्वणा करते हुए वे संख्यात शस्त्रों की ही विकुर्वणा कर सकते हैं, असंख्यात की नहीं । अपने शरीर से सम्बद्ध की विकुर्वणा कर सकते हैं, असम्बद्ध की नहीं, सदृश की रचना कर सकते हैं, असदृश की नहीं । इन विविध शस्त्रों की रचना करके एक दूसरे नैरयिक पर प्रहार
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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