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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [९७] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों की मोटाई कितनी है ? गौतम ! तीन हजार योजन की । वे नीचे एक हजार योजन तक घन हैं, मध्य में एक हजार योजन तक झुषिर हैं और ऊपर एक हजार योजन तक संकुचित हैं । इसी प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों की लम्बाई-चौड़ाई तथा परिक्षेप कितना है ? गौतम ! वे नरकावास दो प्रकार के हैं । यथा - संख्यात योजन के विस्तार वाले और असंख्यात योजन के विस्तार वाले । इनमें जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं, उनका आयाम - विष्कंभ संख्यात हजार योजन है और परिधि भी संख्यात हजार योजन की है । उनमें जो असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं, उनका आयाम-विष्कंभ असंख्यात हजार योजन और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है । इसी तरह छठी पृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! सातवीं नरकपृथ्वी के नरकावासों का आयाम - विष्कंभ और परिधि कितनी है ? गौतम ! सातवीं पृथ्वी के नरकावास दो प्रकार के हैं-संख्यात हजार योजन विस्तार वाले और असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले । इनमें जो संख्यात हजार योजन विस्तार वाला है वह एक लाख योजन आयाम - विष्कंभ वाला है उसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्तावीस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठावीस धनुष, साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । जो असंख्यात हजार योजन विस्तार वाले हैं, उनका आयाम - विष्कंभ असंख्यात हजार योजन का और परिधि भी असंख्यात हजार योजन की है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकवास वर्ण की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! वे नरकावास काले हैं, अत्यन्तकाली कान्तिवाले हैं, नारक जीवों के रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं, भयानक हैं, नारक जीवों को अत्यन्त त्रास करने वाले हैं और परम काले हैं - इनसे बढ़कर और अधिक कालिमा कहीं नहीं है । इसी प्रकार सातों पृथ्वियों के नारकवासों में जानना । [१८] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावास गंध की अपेक्षा कैसे हैं ? गौतम ! जैसे सर्प का मृतकलेवर हो, गाय का मृतकलेवर हो, कुत्ते का मृतकलेवर हो, बिल्ली का मृतकलेवर हो, इसी प्रकार मनुष्य का, भैंस का, चूहे का, घोड़े का, हाथी का, सिंह का, व्याघ्र का, भेड़िये का, चीते का मृतकलेवर हो जो धीरे-धीरे सूज - फूलकर सड़ गया हो और जिसमें से दुर्गन्ध फूट रही हो, जिसका मांस सड़-गल गया हो, जो अत्यन्त अशुचिरूप होने से कोई उसके पास भटकना तक न चाहे ऐसा घृणोत्पादक और बीभत्सदर्शन वाला और जिसमें कोड़े बिलबिला रहे हों ऐसे मृतकलेवर होते हैं भगवन् ! क्या ऐसे दुर्गन्ध वाले नरकावास हैं ? नहीं गौतम ! इससे अधिक अनिष्टतर, अकांततर यावत् अमनोज्ञ उन नरकावासों की गन्ध है । इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक कहना । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नरकावासों का स्पर्श कैसा है ? गौतम ! जैसेतलवार की धार का, उस्तरे की धार का, कदम्बचीरिका के अग्रभाग का, शक्ति, भाले, तोमर, बाण, शूल, लगुड़, भिण्डीपाल, सूइयों के समूह इन सब के अग्रभाग का, कपिकच्छु, बिच्छू का डंक, अंगार, ज्वाला, मुर्मुर, अर्चि, अलात, शुद्धानि इन सबका जैसा स्पर्श होता है, क्या वैसा स्पर्श नरकावासों का हैं ? भगवान् ने कहा कि ऐसा नहीं है । इनसे भी अधिक अनिष्टतर यावत् अणाम उनका स्पर्श होता है । इसी तरह अधः सप्तमपृथ्वी तक जानना । ४८
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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