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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इसलिए गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि यह रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् शाश्वत है और कथंचित् अशाश्वत है । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना । भगवन् ! यह रत्नप्रभापृथ्वी काल से कितने समय तक रहने वाली है ? गौतम ! यह रत्नप्रभापृथ्वी 'कभी नहीं थी', ऐसा नहीं, 'कभी नहीं है', ऐसा भी नहीं और 'कभी नहीं रहेगी', ऐसा भी नहीं । यह अतीतकाल में थी, वर्तमान में है और भविष्य में भी रहेगी । यह ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है, अक्षय है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना । [१३] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमांत से नीचे के चस्मान्त के बीच कितना अन्तर कहा गया है ? गौतम ! एक लाख अस्सी हजार योजन । रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से खरकांड के नीचे के चरमान्त के बीच सोलह हजार योजन का अन्तर है। रत्नप्रभपृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से रत्नकांड के नीचे के चरमान्त के बीच एक हजार योजन का अन्तर है । रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से वज्रकांड के ऊपर के चस्मान्त के बीच एक हजार योजन का अन्तर है । रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चस्मान्त से वज्रकांड के नीचे के चरमान्त के बीच दो हजार योजन का अन्तर है । इस प्रकार रिष्टकाण्ड के ऊपर के चस्मान्त के बीच पन्द्रह हजार योजन का अन्तर है और नीचे के चरमान्त तक सोलह हजार का अन्तर है । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से पंकबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त के बीच कितना अन्तर है ? गौतम ! सोलह हजार योजन । नीचे के चरमान्त तक एक लाख योजन का अन्तर है । अपबहुलकाण्ड के ऊपर के चरमान्त तक एक लाख योजन का और नीचे के चस्मान्त तक एक लाख अस्सी हजार योजन का अन्तर है । घनोदधि के ऊपर के चरमान्त तक एक लाख अस्सी हजार और नीचे के चरमान्त तक दो लाख योजन का अन्तर है । इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनवात के ऊपर के चस्मान्त तक दो लाख योजन का अन्तर है और नीचे के चरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है । इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से तनुवात के ऊपर के चस्मान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है और नीचे के चरमान्त तक भी असंख्यात लाख योजन का अन्तर है । इसी प्रकार अवकाशान्तर के दोनों चरमान्तों का भी अन्तर समझना । हे भगवन् ! दूसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त के बीच कितना अन्तर है ? गौतम ! एक लाख बत्तीस हजार योजन । घनोदधि के उपरि चरमान्त के बीच एक लाख बत्तीस हजार योजन का अन्तर है । नीचे के चरमान्त तक एक लाख बावन हजार योजन का अन्तर है । घनवात के उपरितन चरमान्त का अन्तर भी इतना ही है । घनवात के नीचे के चरमान्त तक तथा तनुवात और अवकाशान्तर के ऊपर और नीचे के चरमान्त तक असंख्यात लाख योजन का अन्तर है । इस प्रकार सप्तम पृथ्वी तक कहना चाहिए । विशेषता यह है कि जिस पृथ्वी का जितना बाहल्य है उससे घनोदधि का संबंध बुद्धि से जोड़ लेना चाहिए । जैसे कि तीसरी पृथ्वी के ऊपर के चरमान्त से घनोदधि के चरमान्त तक एक लाख अड़तालीस हजार योजन का अन्तर है । पंकप्रभा पृथ्वी के ऊपर के चस्मान्त से उसके घनोदधि के चरसान्त तक एक लाख चवालीस हजार का अन्तर है । घूमप्रभा के ऊपरी
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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