SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद होता है । कर्मभूमि के मनुष्य का यावत् विदेह के मनुष्यों का अन्तर यावत् धर्माचरण की अपेक्षा एक समय इत्यादि मनुष्यस्त्रियों के समान कहना । अन्तर्वीपों के अन्तर तक उसी प्रकार कहना । देवपुरुषों का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । यही भवनवासी देवपुरुष से लगा कर सहस्रार देवलोक तक के देव पुरुषों के विषय में समझना । भगवन् ! आनत देवपुरुषों का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल । इसी प्रकार ग्रैवेयक देवपुरुषों का भी अन्तर जानना । अनुत्तरोपपातिक देवपुरुषों का अन्तर जघन्य से वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट संख्यात सागरोपम से कुछ अधिक है । [६४] स्त्रियों का जैसा अल्पबहुत्व कहा यावत् हे भगवन् ! देव पुरुषों-भवनपति, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े वैमानिक देवपुरुष, उनसे भवनपति देवपुरुष असंख्येयगुण, उनसे वानव्यन्तर देवपुरुष असंख्येय गुण, उनसे ज्योतिष्क देवपुरुष संख्येयगुणा हैं । हे भगवन् ! इन तिर्यंचयोनिक पुरुपों-जलचर, स्थलचर और खेचर; मनुष्य पुरुषों-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक, अन्तर्दीपकों में; देवपुरुषों-भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों-सौधर्म देवलोक यावत् सर्वार्थसिद्ध देवपुरुषों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े अन्तर्वीपों के मनुष्यपुरुष, उनसे देवकुरु उत्तरकुरु अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे हरिवास रम्यकवास अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे हेमवत हैरण्यवत अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे भरत ऐवतवास कर्मभूमि के मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे पूर्वविदेह अपरविदेह कर्मभूमि मनुष्यपुरुष दोनों संख्यातगुण, उनसे अनुत्तरोपपातिक देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे उपरिम ग्रैवेयक देव पुरुष संख्यातगुण, उनसे मध्यम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे अधस्तन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे अच्युतकल्प के देवपुरुप संख्यातगुण, उनसे यावत् आनतकल्प के देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे सहस्रारकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे महाशुक्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे यावत् महेन्द्रकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे सनत्कुमारकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे ईशानकल्प के देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे सौधर्मकल्प के देवपुरुष संख्यातगुण, उनसे भवनवासी देवपुरुष असंख्यातगुण, उनसे खेचर तिर्यंचयोनिक पुरुष असंख्यातगुण, उनसे स्थलचर तिर्यंचयोनिक पुरुष संखेयगुण, उनसे जलचर तिर्यंचयोनिक पुरुष असंखेयगण, उनसे वाणव्यन्तर देवपुरुष संखेयगुण, उनसे ज्योतिषी देवपुरुष संखेयगुण हैं। [६५] हे भगवन् ! पुरुषवेद की कितने काल की बंधस्थिति है ? गौतम ! जघन्य आठ वर्ष और उत्कृष्ट दस कोडाकोडी सागरोपम । एक हजार वर्ष का अबाधाकाल है । अबाधाकाल से रहित स्थिति कर्मनिषेक है । भगवन् ! पुरुषवेद किस प्रकार का है ? गौतम ! वन की अग्रिज्वाला के समान है । [६] भंते ! नपुंसक कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के नैरयिक नपुंसक, तिर्यक्योनिक नपुंसक और मनुष्ययोनिक नपुंसक । नैरयिक नपुंसक सात प्रकार के हैं, यथा
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy