SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है और वर्णादि से षट्स्थानपतित है । जघन्य स्थिति वाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-जघन्य स्थिति वाले पुद्गल द्रव्य से तुल्य है; प्रदेशों से षट्स्थानपतित है; अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले में भी कहना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थिति वाले पुद्गलों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति से भी यह चतुःस्थानपतित है । जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्तपर्याय हैं । क्योंकी-जघन्यगुण काले पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है, शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । हे गौतम ! इसी कारण जघन्यगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले पुद्गलों को समझना । मध्यमगुण काले पुद्गलों के पर्यायों में भी इसी प्रकार कहना। विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है । कृष्णवर्ण के पर्यायों के समान शेष वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शों को, यावत् अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण रूक्षस्पर्श स्वस्थान में षट्स्थानपतित है, तक कहना । पद-५-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद-भाग-७-समाप्त |
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy