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________________ २०० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद - गौतम ! आनत-प्राणत कल्पों के ऊपर समान दिशा और समान विदिशा में, यहाँ आरण और अच्युत नाम के दो कल्प हैं, जो पूर्व-पश्चिम में लम्बे और उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण हैं, अर्द्धचन्द्र के आकार में संस्थित और अर्चिमाली की तेजोराशि के समान प्रभा वाले हैं । उनकी लम्बाई-चौड़ाई तथा परिधि भी असंख्यात कोटा-कोटी योजन की है । वे विमान पूर्णतः रत्नमय, स्वच्छ यावत प्रतिरूप हैं । उन विमानों के ठीक मध्यप्रदेशभाग में पांच अवतंसक कहे गए हैं । वे इस प्रकार हैं-१. अंकावतंसक, २. स्फटिकावतंसक, ३. रत्नावतंसक, ४. जातरूपावतंसक और इन चारों के मध्य में, ५. अच्युतावतंसक है । ये अवतंसक सर्वरत्नमय हैं, यावत् प्रतिरूप हैं । इनमें आरण और अच्युत देवों के पर्याप्तकों एवं अपर्याप्तकों के स्थान हैं । (ये स्थान) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । इनमें बहुत-से आरण और अच्युत देव यावत् विचरण करते हैं । यहीं अच्युतावतंसक में देवेन्द्र देवराज अच्युत निवास करता है । वर्णन पूर्ववत् । विशेष यह कि अच्युतेन्द्र तीन सौ विमानावासों का, १०,००० सामानिक देवों का तथा ४०,००० आत्मरक्षक देवों का आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है । [२२९] (द्वादश कल्प-विमानसंख्या-क्रमशः) बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख, पचास हजार, चालीस हजार, सहस्रारकल्प में छह हजार । तथा (२३०] आनत-प्राणत कल्पों में चार सौ, तथा आरण-अच्युत कल्पों में तीन सौ विमान होते हैं । अन्तिम इन चार कल्पों में सात सौ विमान होते हैं । [२३१] द्वादशकल्प सामानिक संख्या क्रमशः- ८४,०००, ८०,०००, ७२,०००, ७०,०००, ६०,०००, ५०,०००, ४०,०००, ३०,००० २०,००० और आरण-अच्युत में १०,००० है । (२३२] इन्ही बारह कल्पों के आत्मरक्षक इन से (क्रमशः) चार-चार गुने हैं । भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त अधस्तन ग्रैवेयक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! आरण और अच्युत कल्पों के ऊपर यावत् ऊपर दूर जाने पर अधस्तन-प्रैवेयक देवों के तीन ग्रैवेयक-विमानप्रस्तट हैं; वर्णन पूर्ववत् । वे परिपूर्ण चन्द्रमा के आकार में संस्थित हैं । उनमें अधस्तन ग्रैवेयक देवों के विमान १११ है । वे विमान पूर्णरूप से रत्नमयहैं, यावत् 'प्रतिरूप हैं' । यहाँ पर्याप्तक और पर्याप्तक अधस्तन-प्रैवेयक देवों के स्थान हैं । उनमें बहुत-से अधस्तन-प्रैवेयक देव निवास करते हैं, वे सब समान ऋद्धिवाले, सभी समान द्युतिवाले, सभी समान यशस्वी, सभी समान बली, सब समान अनुभाव वाले, महासुखी, इन्द्ररहित, प्रेष्यरहित, पुरोहितहीन हैं। वे देवगण 'अहमिन्द्र' हैं । भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक मध्य ग्रैवेयक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! अधस्तन ग्रैवेयकों के ऊपर समान दिशा और समान विदिशा में यावत् ऊपर दूर जाने पर, मध्यम ग्रैवेयक देवों के तीन ग्रैवेयकविमान-प्रस्तट हैं; इत्यादि वर्णन अधस्तन ग्रैवेयकों के समान समझना विशेष यह कि यहां १०७ विमानावास हैं । वे विमान यावत् 'प्रतिरूप हैं' यहाँ पर्याप्त और अपर्याप्त मध्यम-ग्रैवेयक देवों के स्थान हैं । वहाँ बहुत-से मध्यम ग्रैवेयकदेव निवास करते हैं यावत् वे देवगण 'अहमिन्द्र' हैं ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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