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________________ प्रज्ञापना- २ /-/ २०५ १९१ [२०५] इनके मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमशः इस प्रकार हैं - चूडामणि, नाग का फन, गरुड़, वज्र, पूर्णकलश, सिंह, मकर, हस्ती, अश्व और वर्द्धमानक इनसे युक्त विचित्र चिह्नों वाले, सुरूप, महर्द्धिक, महाद्युतिवाले, महाबलशाली, महायशस्वी, महाअनुभाग वाले, महासुखवाले, हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले, कड़ों श्रौर बाजूबन्दों से स्तम्भित भुजा वाले, कपोलों को चिकने बनाने वाले अंगद, कुण्डल तथा कर्णपीठ के धारक, हाथों में विचित्र आभूषण वाले, विचित्र पुष्पमाला और मस्तक पर मुकुट धारण किये हुए, कल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए, कल्याणकारी श्रेष्ठमाला और अनुलेपन के धारक, देदीप्यमान शरीर वाले, लम्बी वनमाला के धारक तथा दिव्य वर्ण से, दिव्य गन्ध से, दिव्य स्पर्श से, दिव्य संहनन से, दिव्य संस्थान से, दिव्य ऋद्धि, धुति, प्रभा-छाया, अर्चि, तेज एवं दिव्य लेश्या से दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हुए, सुशोभित करते हुए वे वहाँ अपने-अपने लाखों भवनवासों का हजारों सामानिकदेवों का, त्रायस्त्रिंश देवों का, लोकपालों का, अग्रमहिषियों का, परिषदाओं का, सैन्यों का, सेनाधिपतियों का, आत्मरक्षक देवों का, तथा अन्य बहुत-से भवनवासी देवों और देवियों का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व, महात्तरत्व, आज्ञैश्वरत्व, एवं सेनापतित्व करते-कराते हुए तथा पालन करते-कराते हुए, अहत नृत्य, गीत, वादित, एवं तंत्री, तल, ताल, त्रुटित और घनमृदंग बजाने से उत्पन्न महाध्वनि के साथ दिव्य एवं उपभोग्य भोगों को भोगते हुए विचरते हैं । I भगवन् ! पर्याप्त अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! १,८०,००० योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीच में १,७८,००० योजन में असुरकुमारदेवों के चौंसठ लाख भवन - आवास है । भवनावास वर्णन - पूर्ववत् जानना । (वे) उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं । वे काले, लोहिताक्षरत्न तथा बिम्बफल के समान ओठों वाले, श्वेत पुष्पों के समान दातों तथा काले केशों वाले, बाएँ एक कुण्डल के धारक, गीले चन्दन से लिप्त शरीरवाले, शिलिन्धपुष्प के समान थोड़े-से प्रकाशमान तथा संक्लेश उत्पन्न न करने वाले सूक्ष्म अतीव उत्तम वस्त्र हुए, प्रथम वय को पार किये हुए और द्वितीय वय को असंप्राप्त, भद्र यौवन में वर्तमान होते हैं । (वे) तलभंगक, त्रुटित, एवं अन्यान्य श्रेष्ठ आभूषणों में जटित निर्मल मणियों तथा रत्नों से मण्डित भुजाओं वाले, दस मुद्रिकाओं से सुशोभित अग्रहस्त वाले, चूड़ामणिरूप अद्भुत चिह्न वाले, सुरूप, इत्यादि यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विहरण करते हैं । यहाँ दो असुरकुमारों के राजा - चमरेन्द्र और बलीन्द्र निवास करते हैं, वे काले, महानील के समान, नील की गोली, गवल, अलसी के फूल के समान, विकसित कमल के समान निर्मल कहीं श्वेत रक्त एवं ताम्रवर्ण के नेत्रों वाले, गरुड के समान विशाल सीधी और ऊँची नाक वाले, पुष्ट या तेजस्वी मूंगा तथा बिम्बफल के समान अधरोष्ठ वाले; श्वेत विमल एवं निर्मल, चन्द्रखण्ड, जमे हुए दहीं, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल दन्तपंक्ति वाले, अग्नि में तपाये और धोये हुए तपनीय सुवर्णसमान लाल तलवों, तालु तथा जिह्वा वाले, अंजन तथा मेघ के समान काले, रुचकरत्न के समान रमणीय एवं स्निग्ध केशों वाले, बाएं एक कान में कुण्डल के धारक इत्यादि पूर्ववत् विशेषण वाले यावत् दिव्य भोगों को भोगते हुए रहते हैं ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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