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________________ १७० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद भी होते हैं | गन्ध से-सुगन्धपरिणत भी और दुर्गन्धपरिणत भी होते हैं । रस से-(वे) तिक्तरस यावत् मधुररस-परिणत भी । स्पर्श से-(वे) गुरुस्पर्श यावत् रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं । संस्थान से परिमण्डलसंस्थान यावत् आयतसंस्थान-परिणत भी । जो स्पर्श से गुरुस्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, यावत् संस्थान से आयतसंस्थान-परिणत भी। जो स्पर्श की अपेक्षा से-लघु स्पर्श से परिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं; यावत संस्थान से-आयतसंस्थान-परिणत भी । जो स्पर्श से-शीतस्पर्शपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, यावत् संस्थान से-आयतसंस्थान-परिणत भी । जा स्पर्श से उष्णस्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, यावत् संस्थान से आयतसंस्थान-परिणत भी । जो स्पर्श से स्निग्धस्पर्श-परिणत हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्णपरिणत भी यावत् संस्थान से आयातसंस्थान-परिणत भी होते हैं । जो स्पर्श से रूक्षस्पर्शपरिणत हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं यावत् संस्थान से-आयतसंस्थानपरिणत भी होते हैं। जो संस्थान से परिमण्डलसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण यावत् शुक्लवर्णपरिणत भी होते हैं । गन्ध से-(वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं ओर दुर्गन्ध-परिणत भी । रस से-तिक्तरस यावत् मधुररसपरिणत भी होते हैं । स्पर्श से-(वे) कर्कशस्पर्श यावत् रूक्षस्पर्शपरिणत भी होते हैं । जो संस्थान की अपेक्षा से-वृत्तसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण सेकृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं, यावत् स्पर्श से रूक्षस्पर्श-परिणत भी । जो संस्थान सेत्र्यस्रसंस्थान-परिणत हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्णपरिणत हैं, यावत् स्पर्श से रूक्षस्पर्शपरिणत भी। जो संस्थान से चतुरस्रसंस्थानपरिणत हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं-यावत् स्पर्श से रूक्षस्पर्शपरिणत भी । जो संस्थान से आयतसंस्थानपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्णपरिणत भी होते हैं यावत् स्पर्श से रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं । यह हुई रूपी-अजीवप्रज्ञापना । [१४] वह जीवप्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है । संसार-समापन्न जीवों की प्रज्ञापना और असंसार-समापन्न जीवों की प्रज्ञापना । [१५] वह असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है । अनन्तर्गसद्ध और परम्परसिद्ध-असंसार-समापन्नजीव-प्रज्ञापना । [१६] वह अनन्तरसिद्ध-असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? पन्द्रह प्रकार की है। (१) तीर्थसिद्ध, (२) अतीर्थसिद्ध, (३) तीर्थंकरसिद्ध, (४) अतीर्थंकरसिद्ध, (५) स्वयंबुद्धसिद्ध, (६) प्रत्येकबुद्धसिद्ध, (७) बुद्धबोधितसिद्ध, (८) स्त्रीलिंगसिद्ध, (९) पुरुषलिंगसिद्ध, (१०) नपुंसकगलिंसिद्ध, (११) स्वलिंगसिद्ध, (१२) अन्यलिंगसिद्ध, (१३) गृहस्थलिंगसिद्ध, (१४) एकसिद्ध और (१५) अनेकसिद्ध ।। [१७] वह परम्परसिद्ध-असंसारसमापन्न-जीव-प्रज्ञापना क्या है ? अनेक प्रकार की है। अप्रथमसमयसिद्ध, द्विसमयसिद्ध, त्रिसमयसिद्ध, यावत्-संख्यातसमयसिद्ध, असंख्यात समयसिद्ध और अनन्तसमयसिद्ध । [१८] वह संसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? पांच प्रकार की है । एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय संसार-समापन्न-जीवप्रज्ञापना । [१९] वह एकेन्द्रिय-संसारसमापनजीव-प्रज्ञापना क्या है ? पांच प्रकार की है ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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