SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद | प्रतिपत्ति-१०-सर्वजीव-९ । [३९७] जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव दस प्रकार के हैं, वे इस प्रकार कहते हैं, यथा पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । भगवन् ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिक के रूप में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से असंख्यातकाल तक, जो असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप से है और क्षेत्रमार्गणा से असंख्येय लोकाकाशप्रदेशों के निर्लेपकाल के तुल्य है । इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक की संचिट्ठणा जानना । वनस्पतिकायिक की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रह सकता है । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को भी जानना । पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष साधिक एक हजार सागरोपम तक रह सकता है । अनिन्द्रिय, सादि-अपर्यवसित है । पृथ्वीकायिक का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । इसी प्रकार अपकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक को भी जानना । वनस्पतिकायिकों का अन्तर वही है जो पृथ्वीकायिक की संचिट्ठणा है, इसी प्रकार द्वीन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । अनिन्द्रिय सादि-अपर्यवसित है । अल्पबहुत्व-गौतम ! सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे तेजस्कायिक असंख्यगुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अप्कायिक विशेषाधिक हैं, उनसे वायुकायिक विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनन्तगुण हैं और उनसे वनस्पतिकायिक अनन्तगुण हैं । [३९८] अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा-१. प्रथमसमयनैरयिक, २. अप्रथमसमयनैरयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमयमनुष्य, ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव, ८. अप्रथमसमयदेव, ९. प्रथमसमयसिद्ध, १०. अप्रथमसमयसिद्ध । प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूप में ? एक समय तक । अप्रथमसमयनैरयिक उसी रूप में ? एक समय कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है । प्रथमसमयतिर्यग्योनिक उसी रूप में ? एक समय तक। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण तक और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल तक रहता है । प्रथमसमयमनुष्य उस रूप में ? एक समय तक । अप्रथमसमयमनुष्य जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहता है । देव का कथन नैरयिक की तरह है । प्रथमसमयसिद्ध उस रूप में ? एक समय तक । अप्रथमसमयसिद्ध सादि-अपर्यवसित होने से सदाकाल रहता है । प्रथमसमयनैरयिक जघन्य से अन्तर्मुहर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल रहता है । अप्रथमसमयनैरयिक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । प्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है, उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है । अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर जघन्य समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहण है
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy