SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम-५/-/३६४ १५३ अनन्त हैं । इसी प्रकार पर्याप्तसूत्र और अपर्याप्तसूत्र भी कहना । इसी प्रकार सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद के सूत्र कहना । इसी प्रकार निगोदजीवों के प्रदेशों की अपेक्षा से नौ ही सूत्रों में अनन्त कहना । भगवन् ! इन सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त निगोदों में द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेश की अपेक्षा तथा द्रव्य-प्रदेश की अपेक्षा से कौन किससे कम, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से सबसे थोड़े बादरनिगोद पर्याप्तक हैं उनसे बादरनिगोद अपर्याप्तक असंख्येयगुण हैं उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्तक असंख्येयगुण हैं, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त संख्येयगुण हैं प्रदेश की अपेक्षा से ऊपर कहा हुआ क्रम ही जानना चाहिए । द्रव्यप्रदेश की अपेक्षा से सबसे थोड़े बादरनिगोद पर्याप्त द्रव्यापेक्षया, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त संख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे बादरनिगोद पर्याप्त अनन्तगुण प्रदेशापेक्षया, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण प्रदेशापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण प्रदेशापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त संख्येयगुण प्रदेशापेक्षया ।। भगवन् ! इन सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त निगोदों में और सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त निगोदजीवों में द्रव्यापेक्षया, प्रदेशापेक्षया और द्रव्य-प्रदेशापेक्षया कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सब से कम बादरनिगोद पर्याप्त द्रव्यापेक्षया, उनसे बादरनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद पर्याप्त संख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे बादरनिगोद जीव पर्याप्त अनन्तगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे बादरनिगोद जीव अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोदजीव अपर्याप्त असंख्येयगुण द्रव्यापेक्षया, उनसे सूक्ष्मनिगोद जीव पर्याप्त संख्येयगुण द्रव्यापेक्षया । प्रतिपत्ति-५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (प्रतिपत्ति-६- "सप्तविध") [३६५] जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नकजीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद है । नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । तिर्यक्योनिक की जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है । तिर्यकत्री, मनुष्य और मनुष्यस्त्री की भी यही स्थिति है । देवों की स्थिति नैरयिक की तरह जानना और देवियों की स्थिति जघन्य १०००० और उत्कृष्ट ५५ पल्योपम है । नैरयिक और देवों की तथा देवियों की जो भवस्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है । तिर्यंचों की जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल है । तिर्यस्त्रियों की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है । इसी प्रकार मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों की भी संचिट्ठणा जानना । नैरयिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है । तिर्यक्योनिकों को छोड़कर सबका अन्तर उक्त प्रमाण ही कहना चाहिए । तिर्यक्योनिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy