SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाजीवाभिगम-४/-/३४५ १४७ एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त का अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! इन द्वीन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त में? गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रिय पर्याप्त, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं । इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रियों का अल्पबहुत्व जानना । भगवन् ! इन एकेन्द्रिय, यावत् पंचेन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्तों में ? गौतम ! सबसे थोड़े चतुरिन्द्रिय पर्याप्त, उनसे पंचेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे पंचेन्द्रिय अपर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे त्रीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय अपर्याप्त अनन्तगुण, उनसे सेन्द्रिय अपर्याप्त विशेषाधिक, उनसे एकेन्द्रिय पर्याप्त संख्येयगुण, उनसे सेन्द्रिय पर्याप्त विशेषाधिक, उनसे सेन्द्रिय विशेषाधिक है । (प्रतिपत्ति-५-"षड्विध") [३४६] जो आचार्य ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के हैं, उनका कथन इस प्रकार है-पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक । भगवन् ! पृथ्वीकायिकों का क्या स्वरूप है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म और बादर । सूक्ष्मपृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इसी प्रकार बादरपृथ्वीकायिक के भी दो भेद हैं। इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के चार-चार भेद कहना । त्रसकायिक दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । [३४७] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष । इसी प्रकार सबकी स्थिति कहना । त्रसकायिकों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । सब अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है । सब पर्याप्तकों की उत्कृष्ट स्थिति कुल स्थिति में से अन्तर्मुहूर्त कम करके कहना । . [३४८] भगवन् ! पृथ्वीकाय, पृथ्वीकाय के रूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट असंख्येय काल यावत् असंख्येय लोकप्रमाण आकाशखण्डों का निर्लेपनाकाल । इसी प्रकार यावत् वायुकार्य की संचिट्ठणा जानना । वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है यावत् आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय हैं, उतने पुद्गलपरावर्तकाल तक । त्रसकाय की कायस्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है । छहों अपर्याप्तों की कायस्थिति जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है । [३४९] पर्याप्तों में पृथ्वीकाय की उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष है । यही अप्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय पर्याप्तों की है । तेजस्काय पर्याप्तक की कायस्थिति संख्यात रातदिन की है, त्रसकाय पर्याप्त की कायस्थिति साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है । [३५०] भगवन् ! पृथ्वीकाय का अन्तर कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल है । इसी प्रकार यावत् वायुकाय का अन्तर वनस्पतिकाल है । त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है । वनस्पतिकाय का अन्तर पृथ्वीकायिक कालप्रमाण (असंख्येयकाल) है । इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पतिकाल है । अपर्याप्त
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy