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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद) [ ३००] हार द्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं । हारसमुद्र में हारवर और हावर - महावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । हारवरोदसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हारवरावभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । हारवरावभासोदसमुद्र में हारवरावभासवर और हारवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । इस तरह आगे सर्वत्र त्रिप्रत्यवतार और देवों के नाम उद्भावित कर लेना । द्वीपों के नामों के साथ भद्र और महाभद्र शब्द लगाने से एवं समुद्रों के नामों के साथ "वर" शब्द लगाने से उन द्वीपों और समुद्रों के देवों के नाम बन जाते हैं यावत् सूर्यद्वीप, सूर्यसमुद्र, सूर्यवरद्वीप, सूर्यवरसमुद्र, सूर्यवराभासद्वीप और सूर्यवरावभाससमुद्र में क्रमशः सूर्यभद्र और सूर्यमहाभद्र, सूर्यवर और सूर्यमहावर, यावत् सूर्यवरावभासवर और सूर्यवरावभासमहावर नाम के देव रहते हैं । क्षोदवरद्वीप से लेकर स्वयंभूरमण तक के द्वीप और समुद्रों में वापिकाएं यावत् बिलपंक्तियां इक्षुरस जैसे जल से भरी हुई हैं और जितने भी पर्वत हैं, वे सब सर्वात्मना वज्रमय हैं । १३२ देवद्वीप नामक द्वीप में दो महर्द्धिक देव रहते हैं - देवभव और देवमहाभव । देवोदसमुद्र में दो महर्द्धिक देव हैं-देववर और देवमहावर यावत् स्वयंभूरमणद्वीप में दो महर्द्धिक देव रहते हैं- स्वयंभूरमणभव और स्वयंभूरमणमहाभव । स्वयंभूरमणद्वीप को सब ओर से घेरे हुए स्वयंभूरमणसमुद्र अवस्थित है, जो गोल है और वलयाकार है यावत् असंख्यात लाख योजन उसकी परिधि है यावत् स्वयंभूरमणसमुद्र का पानी स्वच्छ है, पथ्य है, जात्य-निर्मल है, हल्का है, स्फटिकमणि की कान्ति जैसा है और स्वाभाविक जल के रस से परिपूर्ण है । यहां स्वयंभूरमणवर और स्वयंभूरमणमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । शेष कथन पूर्ववत् । यहां असंख्यात कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, होते हैं और होंगे । [३०१] भगवन् जम्बूद्वीप नाम के कितने द्वीप हैं ? गौतम ! असंख्यात । भगवन् ! लवणसमुद्र नाम के समुद्र कितने हैं ? गौतम ! असंख्यात । इसी प्रकार धातकीखण्ड नाम के द्वीप भी असंख्यात हैं यावत् सूर्यद्वीप नाम के द्वीप असंख्यात हैं । देवद्वीप नामक द्वीप एक ही है । देवोदसमुद्र भी एक ही है । इसी तरह नागद्वीप, यक्षद्वीप, भूतद्वीप, यावत् स्वयंभूरमणद्वीप भी एक ही है । स्वयंभूरमण नामक समुद्र भी एक है । [३०२] भगवन् लवणसमुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ? गौतम ! मलिन, रजवाला, शैवालरहित चिरसंचित जल जैसा, खारा, कडुआ अतएव बहुसंख्यक द्विपद-चतुष्पद-मृग-पशुपक्षी - सरीसृपों के लिए पीने योग्य नहीं है । भगवन् ! कालोदसमुद्र के जल का आस्वाद कैसा है ? गौतम ! पेशल, मांसल, काला, उड़द की राशि की कृष्णकांति जैसी कांतिवाला है और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है । भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! वह स्वच्छ है, उत्तम जाति का है, हल्का है और स्फटिकमणि जैसी कांतिवाला और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है । भगवन् ! वरुणोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! जैसे पत्रासव, त्वचासव, खजूर का सार, भली-भांति पकाया हुआ इक्षुरस तथा मेरक- कापिशायनचन्द्रप्रभा-मनः शिला-वरसीधु-वरवारुणी तथा आठ बार पीसने से तैयार की गई जम्बूफल - मिश्रित वरप्रस्ना जाति की मदिराएं, ओठों पर लगते ही आनन्द देनेवाली, कुछ-कुछ आँखें
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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