SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पद्मवरवेदिका और वनखंड । इनमें त्रिसोपान-पंक्तियां और तोरण हैं । उन प्रत्येक पुष्करिणियों के मध्यभाग में दधिमुखपर्वत हैं जो ६४००० योजन ऊँचे, १००० योजन जमीन में गहरे और सब जगह समान हैं । ये पल्यंक के आकार के हैं । १०००० योजन की इनकी चौड़ाई है । ३१६२३ योजन इनकी परिधि है । ये सर्वरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं । उनमें बहुसमरमणीय भूमिभाग है यावत् वहां बहुत वान-व्यन्तर देव-देवियां बैठते हैं यावत् पुण्यफल का अनुभव करते हैं । सिद्धायतनों का प्रमाण अंजनपर्वत के सिद्धायतनों के समान है । उनमें जो दक्षिणदिशा का अंजनपर्वत है, उसकी चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं । भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरीकिणी । उसी तरह दधिमुख पर्वतों का वर्णन आदि सिद्धायतन पर्यन्त कहना । दक्षिणदिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं । नंदिसेना, अमोघा, गोस्तूपा और सुदर्शना । सिद्धायतन पर्यन्त सब कथन पूर्ववत् । उत्तरदिशा के अंजनपर्वत की चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं । विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता । शेष सब वर्णन सिद्धायतन पर्यन्त पूर्ववत् ।। ___ उन सिद्धायतनों में बहुत से भवनपति, वान-व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव चातुर्मासिक प्रतिपदा आदि पर्व दिनों में, सांवत्सरिक उत्सव के दिनों में तथा अन्य बहुत से जिनेश्वर देव के जन्म, दीक्षा, ज्ञानोत्पत्ति और निर्वाण कल्याणकों के अवसर पर देवकार्यों में, देव-मेलों में, देवगोष्ठियों में, देवसम्मेलनों में और देवों के जीतव्यवहार सम्बन्धी प्रयोजनों के लिए एकत्रित होते हैं, सम्मिलित होते हैं और आनन्द-विभोर होकर महामहिमाशाली अष्टाह्निका पर्व मनाते हुए सुखपूर्वक विचरते हैं । नन्दीश्वरद्वीप में ठीक मध्य भागमें चारो विदिशामें चार रतिकर पर्वत स्थित है । यह चारो रतिकर पर्वत की उंचाई दश-दश हजार योजन है । उसका उद्धेध एक-एक हजार योजन हैं । वह झालर संस्थान वाले हैं । चौडाई दस योजन है परिक्षेप ३१६६२ योजन है । वे सब रत्नमय यावत् प्रतिरूप है । ईशानकोनेमें स्थित रतिकर पर्वत की चारो दिशाओ में एक-एक राजधानी है-नंदोत्तरा, नंदा, उत्तरकुश और देवकुश । यह राजधानी या देवराज ईशानेन्द्र की अग्रमहिषीओ की है । ईसी तरह अग्नि-नैऋत्य-तथा वायव्यकोण के रतिकर पर्वतो की चारो दिशाओ में भी - एक-एक राजधानी है । ऐसे कुल १६-राजधानीया है । उनमें अग्नि और नैऋत्य की राजधानी शकेन्द्र की अग्रमहिषी की है और ईशान और वायव्य कोने में ईशानेन्द्र की अग्रमहिषीओ की राजयग्नी है । कैलाश और हरिवाहन नाम के दो महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव वहां रहते हैं । इस कारण हे गौतम ! इस द्वीप का नाम नंदीश्वरद्वीप है । अथवा द्रव्यापेक्षया शाश्वत होने से यह नाम शाश्वत और नित्य है । यहां सब ज्योतिष्कदेव-संख्यात-संख्यात हैं । २९५] उक्त नंदीश्वरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए नंदीश्वर समुद्र हैं, जो गोल है एवं वलयकार संस्थित है इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् । विशेषता यह है कि यहां सुमनस और सौमनसभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं । २९६] नंदीश्वर समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए अरुण द्वीप है जो गोल है और वलयाकार रूप से संस्थित है । वह समचक्रवालविष्कंभ वाला है । उसका चक्रवालविष्कंब संख्यात लाख योजन है और वही उसकी परिधि है । पद्मवखेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन प्रमाण है । इसी द्वीप का ऐसा नाम इस कारण है कि यहां पर
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy