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________________ १२८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जैसा श्रेष्ठ है । यह गोघृतमंड फूले हुए सल्लकी, कनेर के फूल, सरसों के फूल, कोरण्ट की माला की तरह पीले वर्ण का होता है, स्निग्धता के गुण से युक्त होता है, अग्निसंयोग से चमकवाला होता है, यह निरुपहत और विशिष्ट सुन्दरता से युक्त होता है, अच्छी तरह जमाये हए दहीं को अच्छी तरह मथित करने पर प्राप्त मक्खन को उसी समय तपाये जाने पर, अच्छी तरह उकाले जाने पर उसे अन्यत्र न ले जाते हुए उसी स्थान पर तत्काल छानकर कचरे आदि के उपशान्त होने पर उस पर जो थर जम जाती, वह जैसे अधिक सुगन्ध से सुगन्धित, मनोहर, मधुर-परिणाम वाली और दर्शनीय होती है, वह पथ्यरूप, निर्मल और सुखोपभोग्य होती है, वह घृतोद का पानी इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्त करने वाला है । वहां कान्त और सुकान्त नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । शेष पूर्ववत् यावत् वहां संख्यात तारागणकोटिकोटि शोभित होती थी, शोभित होती है और शोभित होगी । गोल और वलयाकार क्षोदवर नाम का द्वीप घृतोदसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए स्थित है, आदि पूर्ववत् । क्षोदवरद्वीप में जगह-जगह छोटी-छोटी बावड़ियां आदि हैं जो क्षोदोदग से परिपूर्ण हैं । वहां उत्पात पर्वत आदि हैं जो सर्ववैडूर्यरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं । वहां सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । इस कारण यह क्षोदवरद्वीप कहा जाता है । यहां संख्यात-संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण कोटिकोटि हैं । इस क्षोदवरद्वीप को क्षोदोद नाम का समुद्र सब ओर से घेरे हुए है । यह गोल और वलयाकार है यावत् संख्यात लाख योजन का विष्कंभ और परिधि वाला है आदि पूर्ववत् । हे गौतम ! क्षोदोदसमुद्र का पानी जातिवंत श्रेष्ठ इक्षुरस से भी अधिक इष्ट यावत् मन को तृप्ति देने वाला है । वह इक्षुरस स्वादिष्ट, गाढ़, प्रशस्त, विश्रान्त, स्निग्ध और सुकुमार भूमिभाग में निपुण कृषिकार द्वार काष्ठ के सुन्दर विशिष्ट हल से जोती गई भूमि में जिस इक्षु का आरोपण किया गया है और निपुण पुरुष के द्वारा जिसका संरक्षण किया गया हो, तृणरहित भूमि में जिसकी वृद्धि हुई हो और इससे जो निर्मल एवं पककर विशेष रूप से मोटी हो गई हो और मधुररस से जो युक्त बन गई हो, शीतकाल के जन्तुओं के उपद्रव से रहित हो, ऊपर और नीचे की जड़ का भाग निकाल कर और उसकी गाँठों को भी अलग कर बलवंत बैलों द्वारा यंत्र से निकाला गया हो तथा वस्त्र से छाना गया हो और सुगंधित द्रव्यों से युक्त किया गया हो, अधिक पथ्यकारी तथा शुभ वर्ण गंध रस स्पर्श से समन्वित हो, ऐसे इक्षुरस भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति करने वाला है । पूर्ण और पूर्णभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव यहां रहते हैं । इस कारण यह क्षोदोदसमुद्र कहा जाता है । यावत् वहां संख्यात-संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण-कोटि-कोटि शोभित थे, शोभित हैं और शोभित होंगे । [२९४] क्षोदोदकसमुद्र को नंदीश्वर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है । यह गोल और वलयाकार है । यह नन्दीश्वरद्वीप समचक्रवालविष्कंभ से युक्त है । परिधि से लेकर जीवोपपाद तक पूर्ववत् । भगवन् ! नंदीश्वरद्वीप के नाम का क्या कारण है ? गौतम ! नंदीश्वरद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां यावत् विलपंक्तियां हैं, जिनमें इक्षुरस जैसा जल भरा हुआ है । उसमें अनेक उत्पातपर्वत हैं जो सर्व वज्रमय हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं । नंदीश्वरद्वीप के चक्रवालविष्कंभ के मध्यभाग में चारों दिशाओं में चार अंजनपर्वत हैं । वे ८४००० योजन ऊंचे, १००० योजन गहरे, मूल में १०००० योजन
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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