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________________ जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./२६४ १२३ [२६४] ये चन्द्र-सूर्यादि सब ज्योतिष्क मण्डल मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं । प्रदक्षिणा करते हुए इन चन्द्रादि के दक्षिण में ही मेरु होता है, अतएव इन्हें प्रदक्षिणावर्तमण्डल कहा है । चन्द्र, सूर्य और ग्रहों के मण्डल अनवस्थित हैं । [२६५] नक्षत्र और ताराओं के मण्डल अवस्थित हैं । ये भी मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणावर्तमण्डल गति से परिभ्रमण करते हैं । २६६] चन्द्र और सूर्य का ऊपर और नीचे संक्रम नहीं होता, इनका विचरण तिर्यक् दिशा में सर्वआभ्यन्तरमण्डल से सर्वबाह्यमण्डल तक होता रहता है । [२६७] चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, महाग्रह और ताराओं की गतिविशेष से मनुष्यों के सुखदुःख प्रभावित होते हैं । [२६८] सर्वबाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल में प्रवेश करते हुए सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमशः नियम से आयाम की अपेक्षा बढ़ता जाता है और जिस क्रम से वह बढ़ता है उसी क्रम से सर्वाभ्यन्तरमण्डल से बाहर निकलने वाले सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमशः घटता जाता है । [२६९] उन चन्द्र-सूर्यों के तापक्षेत्र का मार्ग कदंबपुष्प के आकार जैसा है । यह मेरु की दिशा में संकुचित है और लवणसमुद्र की दिशा में विस्तृत है । २७०] भगवन् ! चन्द्रमा शुक्लपक्ष में क्यों बढ़ता है और कृष्णपक्ष में क्यों घटता है ? किस कारण से कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं ? [२७१] कृष्ण राहु-विमान चन्द्रमा से सदा चार अंगुल दूर रहकर चन्द्रविमान के नीचे चलता है । वह शुक्लपक्ष में धीरे-धीरे चन्द्रमा को प्रकट करता है और कृष्णपक्ष में धीरे-धीरे उसे ढंक लेता है । [२७२] शुक्लपक्ष में चन्द्रमा प्रतिदिन चन्द्रविमान के ६२ भाग प्रमाण बढ़ता है और कृष्णपक्ष में ६२ भाग प्रमाण घता है । [२७३] चन्द्रविमान के पन्द्रहवें भाग को कृष्णपक्ष में राहुविमान अपने पन्द्रहवें भाग को मुक्त कर देता है । [२७४] इस प्रकार चन्द्रमा की वृद्धि और हानि होती है और इसी कारण कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं । २७५] मनुष्यक्षेत्र के भीतर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा-ये पांच प्रकार के ज्योतिष्क गतिशील हैं। [२७६] अढ़ाई द्वीप से आगे जो पांच प्रकार के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं वे गति नहीं करते, विचरण नहीं करते अतएव स्थित हैं । [२७७] इस जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं । लवणसमुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं । धातकीखण्ड में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं । [२७८] जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं । इनसे दुगुने लवणसमुद्र में हैं और लवणसमुद्र के चन्द्रसूर्यों के तिगुने धातकीखण्ड में हैं । [२७९] धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों में चन्द्रों और सूर्यों का प्रमाण पूर्व के द्वीप या समुद्र के प्रमाण से तिगुना करके उसमें पूर्व-पूर्व के सब चन्द्रों और सूर्यो को जोड़
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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