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________________ ११८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पूर्व में स्वयंभूरमणसमुद्र में असंख्यात हजार योजन आगे जाने पर आती हैं यावत् वहां सूर्यदेव हैं । [२१८] हे भगवन् ! लवणसमुद्र में वेलंधर नागराज हैं क्या ? अग्घा, खन्ना, सीहा, विजाति मच्छकच्छप हैं क्या ? जल की वृद्धि और ह्रास है क्या ? गौतम ! हां हैं । हे भगवन् ! जैसे लवणसमुद्र में वेलंधर नागराज आदि है वैसे अढ़ाई द्वीप से बाहर के समुद्रों में भी ये सब हैं क्या ? हे गौतम ! नहीं हैं । [२१९] हे भगवन् ! लवणसमुद्र का जल उछलनेवाला है या स्थिर है ? उसका जल क्षुभित होने वाला है या अक्षुभित ? गौतम ! लवणसमुद्र का जल उछलनेवाला और क्षुभित होनेवाला है, हे भगवन् ! क्या बाहर के समुद्र भी क्या उछलते जल वाले हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! बाहर के समुद्र स्थिर और अक्षुभित जलवाले हैं । वे पूर्ण हैं, पूरे-पूरे भरे हुए हैं । हे भगवन् ! क्या लवणसमुद्र में बहुत से बड़े मेघ सम्मूर्छिम जन्म के अभिमुख होते हैं, पैदा होते हैं अथवा वर्षा बरसाते हैं ? हां, गौतम ! हैं । हे भगवन् ! बाहर के समुद्रों में भी क्या बहुत से मेघ पैदा होते हैं और वर्षा बरसाते हैं ? हे गौतम ! ऐसा नहीं है । हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि बाहर के समुद्र पूर्ण हैं, पूरे-पूरे भरे हुए हैं, मानो बाहर छलकना चाहते हैं, और लबालब भरे हुए घट के समान जल से परिपूर्ण हैं ? हे गौतम ! बाहर के समुद्रों में बहुत से उदकयोनि के जीव आते-जाते हैं और बहुत से पुद्गल उदक के रूप में एकत्रित होते हैं, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि बाहर के समुद्र पूर्ण हैं, इत्यादि । [२२०] हे भगवन् ! लवणसमुद्र की गहराई की वृद्धि किस क्रम से है ? गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों तरफ पंचानवै-पंचानवै प्रदेश जाने पर एक प्रदेश की उद्धेध-वृद्धि होती है, ९५-९५ बालाग्र जाने पर एक बालाग्र उद्वेध-वृद्धि होती है, ९५-९५ लिक्खा जाने पर एक लिक्खा की उद्वेध-वृद्धि होती है, इसी तरह अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष, कोस, योजन, सौ योजन, हजार योजन जाने पर एक-एक अंगुल यावत् एक हजार योजन की उद्वेध-वृद्धि होती है । हे भगवन् ! लवणसमुद्र की उत्सेध-वृद्धि किस क्रम से होती है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों तरफ ९५-९५ प्रदेश जाने पर सोलह प्रदेशप्रमाण उत्सेधवृद्धि होती है । हे गौतम ! इस क्रम से यावत् ९५-९५ हजार योजन जाने पर सोलह हजार योजन की उत्सेध-वृद्धि होती है । [२२१] हे भगवन् ! लवणसमुद्र का गोतीर्थ भाग कितना बड़ा है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र के दोनों किनारों पर ९५ हजार योजन का गोतीर्थ है । हे भगवन् ! लवणसमुद्र का कितना बड़ा भाग गोतीर्थ से विरहित कहा गया है ? हे गौतम ! लवणसमुद्र का दस हजार योजन प्रमाणक्षेत्र । हे गौतम ! लवणसमुद्र की उदकमाला कितनी बड़ी है ? गौतम ! उदकमाला दस हजार योजन की है । २२२] हे भगवन् ! लवणसमुद्र का संस्थान कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र गोतीर्थ के आकार का, नाव के आकार का, सीप के पुट के आकार का, घोड़े के स्कंध के आकार का, वलभीगृह के आकार का, वर्तुल और वलयाकार संस्थान वाला है । हे भगवन् ! लवणसमुद्र का चक्रवाल-विष्कंभ कितना है, उसकी परिधि कितनी है ? उसकी गहराई कितनी है, उसकी ऊँचाई कितनी है ? उसका समग्र प्रमाण कितना है ?
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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