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________________ ११५ जीवाजीवाभिगम-३ / द्वीप./२०७ I लवणसमुद्र में है । शेष विजया राजधानी की तरह है । ये चारों आवासपर्वत एक ही प्रमाण के हैं और सर्वात्मना रत्नमय हैं । [२०८] हे भगवन् ! लवणाधिपति सुस्थित देव का गौतमद्वीप कहां है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे है, यावत् वहां सुस्थित नाम का महार्द्धिक देव है । [२०९] हे भगवन् ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहां पर ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं । ये द्वीप जम्बूद्वीप की दिशा में ८८१ योजन और ४०/९५ योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवणसमुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे हुए हैं । ये १२००० योजन लम्बे-चौड़े हैं; शेष गौतमद्वीप की तरह जानना । ये उन द्वीपों में बहुसमरमणीय भूमिभाग कहे गये हैं यावत् वहां बहुत से ज्योतिष्क देव उठते-बैठते हैं । उन बहुसमरमणीय भागों में प्रासादावतंसक हैं, जो ६२ ।। योजन ऊँचे हैं, मध्यभाग में दो योजन की लम्बी-चौड़ी, एक योजन मोटी मणिपीठिकाएं हैं, इत्यादि । हे भगवन् ! ये चन्द्रद्वीप क्यों कहलाते हैं ? हे गौतम ! उन द्वीपों की बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियों आदि में बहुत से उत्पलादि कमल हैं, जो चन्द्रमा के समान आकृति और आभा वाले हैं और वहां चन्द्र नामक महर्द्धिक देव, जो पल्योपम की स्थिति वाले हैं, रहते हैं । वे वहां अलग-अलग चार हजार सामानिक देवों यावत् चन्द्रद्वीपों और चन्द्रा राजधानियों और अन्य बहुत से ज्योतिष्क देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए अपने पुण्यकर्मों का विपाकानुभव करते हुए विचरते हैं । इस कारण । हे गौतम ! वे चन्द्रद्वीप द्रव्यपेक्षया नित्य हैं अतएव उनके नाम भी शाश्वत हैं । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानियां कहां हैं ? गौतम ! चन्द्रद्वीपों के पूर्व में तिर्यक् असंख्य द्वीप- समुद्रों को पार करने पर अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन आगे जाने पर हैं । यावत् वहां चन्द्र नामक महर्द्धिक देव हैं । भगवन् ! जम्बूद्वीप के दो सूर्यों के दो सूर्यद्वीप कहां हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में १२००० योजन आगे जाने पर हैं । शेष वर्णन चन्द्रद्वीप समान है । हे भगवन् ! सूर्यद्वीप, सूर्यद्वीप क्यों कहलाते हैं ? हे गौतम ! उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान वर्ण और आकृति वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं, इसलिए वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं । ये सूर्यद्वीप द्रव्यपेक्षया नित्य हैं । इनमें सूर्यदेव, सामानिक देव आदि का यावत् ज्योतिष्क देव-देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं यावत् इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों से पश्चिम में असंख्यात द्वीप - समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में १२००० योजन आगे जाने पर स्थित हैं । उनका प्रमाण आदि पूर्वोक्त चन्द्रादि राजधानियों की तरह जानना यावत् वहां सूर्य नामक महर्द्धिक देव हैं । [२१०] हे भगवन् ! लवणसमुद्र मे रहकर जम्बूद्वीप की दिशा में शिखा से पहले विचरने वाले चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहां हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों समान इनको जानना । विशेषता यह है कि इनकी राजधानियां अन्य लवणसमुद्र में हैं । इसी तरह आभ्यन्तर लावणिक सूर्यो के सूर्यद्वीप लवणसमुद्र में १२००० योजन जाने पर वहां स्थित हैं, आदि चन्द्रद्वीप समान
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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