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________________ ११० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद देव और देवियां उठती-बैठती हैं आदि । उस बहसमरमणीय भूमिभाग के मध्य में एक सिद्धायतन कहा गया है जो एक कोस प्रमाण वाला है-उस जम्बू-सुदर्शना के (१) पूर्वदिशा के भवन से दक्षिण में और दक्षिण-पूर्व के प्रासादावतंसक के उत्तर में (२) दक्षिण दिशा के भवन के पूर्व में और दक्षिण-पूर्व के प्रासादावतंसक के पश्चिम में (३) दाक्षिणात्य भवन के पश्चिम में और दक्षिण-पश्चिम प्रासादावतंसक के पूर्व में (३) पश्चिमी भवन के दक्षिण में और दक्षिण-पश्चिम के प्रासादावतंसक के उत्तर में (५) पश्चिमी भवन के उत्तर में और उत्तरपश्चिम के प्रासादावतंसक के दक्षिण में, (६) उत्तर दिशा के भवन के पश्चिम में और उत्तरपश्चिम के प्रासादावतंसक के पूर्व में और (७) उत्तर दिशा के भवन के पूर्व में और उत्तरपूर्व के प्रासादावतंसक के पश्चिम में एक-एक महान् कूट है । उसका वही प्रमाण है यावत् वहाँ सिद्धायतन है । वह जंबू-सुदर्शना अन्य बहुत से तिलक वृक्षों, लकुट वृक्षों यावत् राय वृक्षों और हिंगु वृक्षों से सब ओर से घिरी हुई है । जंबू-सुदर्शना के ऊपर बहुत से आठ-आठ मंगल-स्वस्तिक यावत् दर्पण, कृष्ण चामर ध्वज यावत् छत्रातिछत्र हैं- जंबू-सुदर्शना के बारह नाम हैं, यथा [१९२] सुदर्शना, अमोहा, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, विदेहजंबू, सौमनस्या, नियता, नित्यमंडिता । [१९३] सुभद्रा, विशाला, सुजाता, सुमना । सुदर्शना जंबू के ये १२ पर्यायवाची नाम हैं । [१९४] हे भगवन् ! जंबू-सुदर्शना को जंबू-सुदर्शना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जम्बू-सुदर्शना में जंबूद्वीप का अधिपति अनादृत नाम का महर्द्धिक देव रहता है । यावत् उसकी एक पल्योपम की स्थिति है । वह चार हजार सामानिक देवों यावत् जंबूद्वीप की जंवूसुदर्शना का और अनादता राजधानी का यावत् आधिपत्य करता हुआ विचरता है । हे भगवन् ! अनादृत देव की अनादृता राजधानी कहां है ? गौतम ! पूर्व में कही हुई विजया राजधानी समान कहना । यावत् वहां महर्द्धिक अनादत देव रहता है । हे गौतम ! जम्बूद्वीप में यहाँ वहाँ जम्बूवृक्ष, जंबूवन और जंबूवनखंड हैं जो नित्य कुसुमित रहते है यावत् श्री से अतीव अतीव उपशोभित होते विद्यमान हैं । अथवा यह भी कारण है कि जम्बूद्वीप यह शाश्वत नामधेय है । यह पहले नहीं था-ऐसा नहीं, वर्तमान में नहीं है, ऐसा भी नहीं और भविष्य में नहीं होगा ऐसा नहीं, यावत् यह नित्य है । [१९५] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्र चमकते थे, चमकते हैं और चमकेंगे? कितने सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे ? कितने नक्षत्र योग करते थे, करते हैं, करेंगे ? कितने महाग्रह आकाश में चलते थे, चलते हैं और चलेंगे ? कितने कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ? गौतम ! दो चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे । दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे । छप्पन नक्षत्र चन्द्रमा से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे । १७६ महाग्रह आकाश में विचरण करते थे, करते हैं और विचरण करेंगे। [१९६-१९७] १३३९५० कोडाकोडी तारागण आकाश में शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे ।
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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