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________________ जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./१८१ १०५ सामानिक देवों की कितने समय की स्थिति है ? गौतम ! एक पल्योपम की स्थिति है । इस प्रकार वह विजयदेव ऐसी महर्द्धि वाला, महाद्युतिवाला, महाबलवाला, महायशवाला महासुख वाला और ऐसा महान् प्रभावशाली है ।। [१८२] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का वैजयन्त का द्वार कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण में पैंतालीस हजार योजन जाने पर उस द्वीप की दक्षिण दिशा के अन्त में तथा दक्षिण दिशा के लवणसमुद्र से उत्तर में है । यह आठ योजन ऊँचा और चार योजन चौड़ा है-यावत् यह वैजयन्त द्वार नित्य है । भगवन् ! वैजयन्त देव की वैजयंती नाम क राजधानी कहाँ है ? गौतम ! वैजयन्त द्वार की दक्षिण दिशा में तिर्यक् असंख्येय द्वीपसमुद्रों को पार करने पर आदि वर्णन विजयद्वार के तुल्य कहना यावत् वहाँ वैजयंत नाम का महर्द्धिक देव है । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का जयन्त नाम का द्वार कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप की पश्चिम दिशा के अन्त में तथा लवणसमुद्र के पश्चिमार्ध के पूर्व में शीतोदा महानदी के आगे है । यावत् वहाँ जयन्त नाम का महर्द्धिक देव है और उसकी राजधानी जयन्त द्वार के पश्चिम में तिर्यक् असंख्य द्वीप-समुद्रों को पार करने पर आदि जानना । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप का अपराजित नाम का द्वार कहाँ है ? गौतम ! मेरुपर्वत के उत्तर में पैंतालीस हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप की उत्तर दिशा के अन्त में तथा लवणसमुद्र के उत्तरार्ध के दक्षिण में है । उसका प्रमाण विजयद्वार के समान है । उसकी राजधानी अपराजित द्वार के उत्तर में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समुद्रों को लांघने के बाद आदि यावत् वहाँ अपराजित नाम का महर्द्धिक देव है । [१८३] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के इन द्वारों में एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर कितना है ? गौतम ! ७९०५२ योजन और देशोन आधा योजन । - [१८४] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप रूप हैं । हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप को स्पृष्ट हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं या जम्बूद्वीप रूप ? गौतम ! वे लवणसमुद्र रूप हैं । हे भगवन् ! जम्बूद्वीप में मर कर जीव लवणसमुद्र में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई होते हैं, कोई नहीं होते । हे भगवन् ! लवणसमुद्र में मर कर जीव जम्बूद्वीप में पैदा होते हैं क्या ? गौतम ! कोई होते हैं, कोई नहीं होते ।। [१८५] हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिण में, मालवंत वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में एवं गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में उत्तरकुरा क्षेत्र । वह पूर्व पश्चिम लम्बा और, उत्तर दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध गोलाकार है । इसका विष्कम्भ ११८४२ - २/१९ योजन है । इसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है । और दोनों ओर से वक्षस्कार पर्वतों को छूती है । यह जीवा ५३००० योजन लम्बी है । इस उत्तरकुरा का धनुष्पृष्ठ दक्षिण दिशा में ६०४१८ - १२/१९ योजन है । हे भगवन् ! उत्तरकुरा का भूमिभाग बहुत सम और रमणीय है । वह आलिंगपुष्कर के मढे हुए चमड़े के समान समतल है-इत्यादि एकोलक द्वीप अनुसार कहना यावत् वे मनुष्य मर
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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