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________________ प्रश्नव्याकरण-१/४/१९ ८३ उनके भाण्डार विविध प्रकार की मणियों, स्वर्ण, रत्न, मोती, मूंगा, धन और धान्य के संचय रूप ऋद्धि से सदा भरपूर रहते हैं । वे सहस्रों हाथियों, घोड़ों एवं रथों के अधिपति होते हैं । सहस्रों ग्रामों, आकरों, नगरों, खेटों, कर्बटों, मङम्बों, द्रोणमुखों, पट्टनों, आश्रमों, संवाहों में स्वस्थ, स्थिर, शान्त और प्रमुदित जन निवास करते हैं, जहां विविध प्रकार के धान्य उपाजने वाली भूमि होती है, बड़े-बड़े सरोवर हैं, नदियाँ हैं, छोटे-छोटे तालाब हैं, पर्वत हैं, वन हैं, आराम हैं, उद्यान हैं, वे अर्धभरत क्षेत्र के अधिपति होते हैं, क्योंकि भरतक्षेत्र का दक्षिण दिशा की ओर का आधा भाग वैताढ्य नामक पर्वत के कारण विभक्त हो जाता है और वह तीन तरफ लवणसमुद्र से घिरा है । उन तीनों खण्डों के शासक वासुदेव होते हैं । वह अर्धभरत छहों प्रकार के कालों में होने वाले अत्यन्त सुख से युक्त होता है । बलदेव और वासुदेव धैर्यवान् और कीर्तिमान् होते हैं । वे ओघबली होते हैं । अतिबल होते हैं । उन्हें कोई आहत नहीं कर सकता । वे कभी शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं होते । वे दयालु, मत्सरता से रहित, चपलता से रहित, विना कारण कोप न करने वाले, परिमित और मंजु भाषण करने वाले, मुस्कान के साथ गंभीर और मधुर वाणी का प्रयोग करने वाले, अभ्युपगत के प्रति वत्सलता रखने वाले तथा शरणागत की रक्षा करने वाले होते हैं । उनका समस्त शरीर लक्षणों से, व्यंजनों से तथा गुणों से सम्पन्न होता है | मान और उन्मान से प्रमाणोपेत तथा इन्द्रियों एवं अवयवों से प्रतिपूर्ण होने के कारण उनके शरीर के सभी अंगोपांग सुडौल-सुन्दर होते हैं । चन्द्रमा के समान सौम्य होता है और वे देखने में अत्यन्त प्रिय और मनोहर होते हैं । वे अपराध को सहन नहीं करते । प्रचण्ड एवं देखने में गंभीर मुद्रा वाले होते हैं । बलदेव की ऊँची ध्वजा ताड़ वृक्ष के चिह्न से और वासुदेव की ध्वजा गरुड़ के चिह्न से अंकित होती है । गर्जते हुए अभिमानियों में भी अभिमानी मौष्टिक और चाणूर नामक पहलवानों के दर्प को (उन्होंने) चूर-चूर कर दिया था । रिष्ट नामक सांड का घात करने वाले, केसरी सिंह के मुख को फाड़ने वाले, अभिमानी नाग के अभिमान का मथन करने वाले, यमल अर्जुन को नष्ट करने वाले, महाशकुनि और पूतना नामक विद्याधारियों के शत्रु, कंस के मुकुट को मोड़ देने वाले और जरासंघ का मान-मर्दन करने वाले थे । वे सघन, एक-सरीखी एवं ऊँची शलाकाओं से निर्मित तथा चन्द्रमण्डल के समान प्रभा वाले, सूर्य की किरणों के समान, अनेक प्रतिदंडों से युक्त छत्रों को धारण करने से अतीव शोभायमान थे । उनके दोनों पार्श्वभागों में ढोले जाते हुए चामरों से सुखद एवं शीतल पवन किया जाता है । उन चामरों की विशेषता इस प्रकार है-पार्वत्य प्रदेशों में विचरण करने वाली चमरी गायों से प्राप्त किये जाने वाले, नीरोग चमरी गायों के पूछ में उत्पन्न हुए, अम्लान, उज्ज्वलस्वच्छ रजतगिरि के शिखर एवं निर्मल चन्द्रमा की किरणों के सदृश वर्ण वाले तथा चांदी के समान निर्मल होते हैं । पवन से प्रताडित, चपलता से चलने वाले, लीलापूर्वक नाचते हुए एवं लहरों के प्रसार तथा सुन्दर क्षीर-सागर के सलिलप्रवाह के समान चंचल होते हैं । साथ ही वे मानसरोवर के विस्तार में परिचित आवास वाली, श्वेत वर्ण वाली, स्वर्णगिरि पर स्थित तथा ऊपर-नीचे गमन करने में अन्य चंचल वस्तुओं को मात कर देने वाले वेग से युक्त हंसनियों के समान होते हैं । विविध प्रकार की मणियों के तथा तपनीय स्वर्ण के बने विचित्र दंडों वाले होते हैं । वे लालित्य से युक्त और नरपतियों की लक्ष्मी के अभ्युदय को प्रकाशित करते हैं।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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