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________________ ७४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सेना को ही युद्ध में नहीं झोंकते । पृथ्वी को विकसित करते हुए, परकीय धन की कामना करनेवाले वे राजा साक्षात् श्मशान समान, अतीव रौद्र होने के कारण भयानक और जिसमें प्रवेश करना अत्यन्त कठिन है, ऐसे संग्राम रूप संकट में चल कर प्रवेश करते हैं । इनके अतिरिक्त पैदल चोरों के समूह होते हैं । कई ऐसे सेनापति भी होते हैं जो चोरों को प्रोत्साहित करते हैं । चोरों के यह समूह दुर्गम अटवी-प्रदेश में रहते हैं । उनके काले, हरे, लाल, पीले और श्वेत रंग के सैकड़ों चिह्न होते हैं, जिन्हें वे अपने मस्तक पर लगाते हैं । पराये धन के लोभी वे चोर-समुदाय दूसरे प्रदेश में जाकर धन का अपहरण करते हैं और मनुष्यों का घात करते हैं । इन चोरों के सिवाय अन्य लुटेरे हैं जो समुद्र में लूटमार करते हैं। वे लुटेरे रत्नों के आकर में चढ़ाई करते हैं । वह समुद्र सहस्रों तरंग-मालाओं से व्याप्त होता है । पेय जल के अभाव में जहाज के कुल-व्याकुल मनुष्यों की कल-कल ध्वनि से युक्त, सहस्रों पाताल-कलशों की वायु के क्षुब्ध होने से उछलते हुए जलकणों की रज से अन्धकारमय बना, निरन्तर प्रचुर मात्रा में उठने वाले श्वेतवर्ण के फेन, पवन के प्रबल थपेड़ों से क्षुब्ध जल, तीव्र वेग के साथ तरंगित, चारों ओर तूफानी हवाएँ क्षोभित, जो तट के साथ टकराते हुए जल-समूह से तथा मगर-मच्छ आदि जलीय जन्तुओं के कारण अत्यन्त चंचल हो रहा होता है । बीच-बीच में उभरे हुए पर्वतों के साथ टकराने वाले एक बहते हुए अथाह जल-समूह से युक्त है, गंगा आदि महानदियों के वेग से जो शीघ्र ही भर जाने वाला है, जिसके गंभीर एवं अथाह भंवरों में जलजन्तु चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होते, ऊपर-नीचे उछलते हैं, जो वेगवान् अत्यन्त प्रचण्ड, क्षुब्ध हुए जल में से उठने वाली लहरों से व्याप्त है, महाकाय मगर-मच्छों, कच्छपों, ओहम्, घडियालों, बड़ी मछलियों, सुंसुमारों एवं श्वापद नामक जलीय जीवों के परस्पर टकराने से तथा एक दूसरे को निगल जाने के लिए दौड़ने से वह समुद्र अत्यन्त घोर होता है, जिसे देखते ही कायरजनों का हृदय काँप उठता है, जो अतीव भयानक है, अतिशय उद्वेगजनक है, जिसका ओर-छोर दिखाई नहीं देता, जो आकाश से सदृश निरालम्बन है, उत्पात से उत्पन्न होने वाले पवन से प्रेरित और ऊपराऊपरी इठलाती हुई लहरों के वेग से जो नेत्रपथ-को आच्छादित कर देता है । ___ उस समुद्र में कहीं-कहीं गंभीर मेघगर्जना के समान गूंजती हुई, व्यन्तर देवकृत घोर ध्वनि के सदृश तथा प्रतिध्वनि के समान गंभीर और धुक्-धुक् करती ध्वनि सुनाई पड़ती है। जो प्रत्येक राह में रुकावट डालने वाले यक्ष, राक्षस, कूष्माण्ड एवं पिशाच जाति के कुपित व्यन्तर देवों के द्वारा उत्पन्न किए जानेवाले हजारों उत्पातों से परिपूर्ण है जो बलि, होम और धूप देकर की जाने वाली देवता की पूजा और रुधिर देकर की जाने वाली अर्चना में प्रयत्नशील एवं सामुद्रिक व्यापार में निरत नौका-वणिकों-जहाजी व्यापारियों द्वारा सेवित है, जो कलिकाल के अन्त समान है, जिसका पार पाना कठिन है, जो गंगा आदि महानदियों का अधिपति होने के कारण अत्यन्त भयानक है, जिसके सेवन में बहुत ही कठिनाइयाँ होती हैं, जिसे पार करना भी कठिन है, यहाँ तक कि जिसका आश्रय लेना भी दुःखमय है, और जो खारे पानी से परिपूर्ण होता है । ऐसे समुद्र में परकीय द्रव्य के अपहारक ऊँचे किए हुए काले और श्वेत झंडों वाले, अति-वेगपूर्वक चलने वाले, पतवारों से सज्जित जहाजों द्वारा आक्रमण करके समुद्र के मध्य मे जाकर सामुद्रिक व्यापारियों के जहाजों को नष्ट कर देते हैं ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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