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________________ प्रश्नव्याकरण- १/२/१२ में जलना पड़ता है । उन्हें न तो शारीरिक सुख प्राप्त होता है और न मानसिक शान्ति ही मिलती है । ७१ मृषावाद का यह इस लोक और परलोक सम्बन्धी फल विपाक है । इस फल- विपाक में सुख का अभाव है और दुःखों की ही बहुलता है । यह अत्यन्त भयानक है और प्रगाढ कर्म-रज के बन्ध का कारण है । यह दारुण है, कर्कश है और असातारूप है । सहस्त्रों वर्षों में इससे छुटकारा मिलता है । फल को भोगे विना इस पाप से मुक्ति नहीं मिलती । ज्ञातकुलनन्दन, महान् आत्मा वीरवर महावीर नामक जिनेश्वर देव ने मृषावाद का यह फल प्रतिपादित किया है । यह दूसरा अधर्मद्वार है । छोटे लोग इसका प्रयोग करते - । यह मृषावाद भयंकर है, दुःखकर है, अपयशकर है, वैरकर है । अरति, रति, राग-द्वेष एवं मानसिक संक्लेश को उत्पन्न करने वाला है । यह झूठ, निष्फल कपट और अविश्वास की बहुलता वाला है । नीच जन इसका सेवन करते हैं । यह नृशंस एवं निर्घृण है । अविश्वासकारक है । परम साधुजनों द्वारा निन्दनीय है । दूसरों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला और परम कृष्णलेश्या से संयुक्त है । अधोगति में निपात का कारण है । पुनः पुनः जन्म-मरण का कारण है, चिरकाल से परिचित है - अतएव अनुगत है । इसका अन्त कठिनता से होता है अथवा इसका परिणाम दुःखमय ही होता है । अध्ययन - २ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन- ३ आस्रवद्वार- ३ [१३] हे जम्बू ! तीसरा अधर्मद्वार अदत्तादान | यह अदत्तादान ( परकीय पदार्थ का ) हरण रूप है । हृदय को जलानेवाला, मरण-भय रूप, मलीन, परकीय धनादि में रौद्रध्यानस्वरूप, त्रासरूप, लोभ मूल तथा विषमकाल और विषमस्थान आदि स्थानों पर आश्रित है । यह अदत्तादान निरन्तर तृष्णाग्रस्त जीवों को अधोगति की ओर ले जाने वाली बुद्धि वाला है । अदत्तादान अपयश का कारण, अनार्य पुरुषों द्वारा आचरित, छिद्र, अपाय एवं विपत्तिका मार्गण करनेवाला, उसका पात्र है । उत्सवों के अवसर पर मदिरा आदि के नशे में बेभान, असावधान तथा सोये हुए मनुष्यों को ठगनेवाला, चित्त में व्याकुलता उत्पन्न करने और घात करने में तत्पर तथा अशान्त परिणाम वाले चोरों द्वारा अत्यन्त मान्य है । यह करुणाहीन कृत्य है, राजपुरुषों, कोतवाल आदि द्वारा इसे रोका जाता है । सदैव साधुजनों, निन्दित, प्रियजनों तथा मित्रजनों में फूट और अप्रीति उत्पन्न करनेवाला और राग द्वेष की बहुलतावाला है । यह बहुतायत से मनुष्यों को मारनेवाले संग्रामों, स्वचक्र-परचक्र सम्बन्धी डमरों - विप्लवों, लड़ाईझगड़ों, तकरारों एवं पश्चात्ताप का कारण है । दुर्गति - पतन में वृद्धि करनेवाला, पुनर्भव करानेवाला, चिरकाल से परिचित, आत्मा के साथ लगा हुआ और परिणाम में दुःखदायी है । यह तीसरा अधर्मद्वार ऐसा है । [१४] पूर्वोक्त स्वरूप वाले अदत्तादान के गुणनिष्पन्न तीस नाम हैं । —–चौरिक्य, परहृत, अदत्त, क्रूरिकृतम्, परलाभ, असंजम, परधनमें गृद्धि, लोलुपता, तस्करत्व, अपहार, हस्तलघुत्व, पापकर्मकरण, स्तेनिका, हरणविप्रणाश, आदान, धनलुम्पता, अप्रत्यय, अवपीड,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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