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________________ प्रश्नव्याकरण-१/१/७ प्याऊ, आवसथ, मठ, गंध, माला, विलेपन, वस्त्र, जूवा, हल, मतिक, कुलिक, स्यन्दन, शिबिका, रथ, शकट, यान, युम्य, अट्टालिका, चरिका, परिघ, फाटक, आगल, अरहट आदि, शूली, लाठी, मुसुंढी, शतध्नी, ढक्कन एवं अन्य उपकरण बनाने के लिए और इसी प्रकार के ऊपर कहे गए तथा नहीं कहे गए ऐसे बहुत-से सैकड़ों कारणों से अज्ञानी जन वनस्पतिकाय की हिंसा करते हैं। दृढमूढ-अज्ञानी, दारुण मति वाले पुरुष क्रोध, मान, माया और लोभ के वशीभूत होकर तथा हँसी, रति, अरति एवं शोक के अधीन होकर, वेदानुष्ठान के अर्थी होकर, जीवन, धर्म, अर्थ एवं काम के लिए, स्ववश और परखश, होकर, प्रयोन से और विना प्रयोजन त्रस तथा स्थावर जीवों का, जो अशक्त हैं, घात करते हैं । (ऐसे हिंसक प्राणी वस्तुतः) मन्दबुद्धि हैं । वे बुद्धिहीन क्रूर प्राणी स्ववश होकर घात करते हैं, विवश होकर, स्ववश-विवश दोनों प्रकार से, सप्रयोजन एवं निष्प्रयोजन तथा सप्रयोजन और निष्प्रयोजन दोनों प्रकार से घात करते हैं । हास्य-विनोद से, वैर से और अनुराग से प्रेरित होकर हिंसा करते हैं । क्रुद्ध होकर, लुब्ध होकर, मुग्ध होकर, क्रुद्ध-लुब्ध-मुग्ध होकर हनन करते हैं, अर्थ के लिए, धर्म के लिए, काम-भोग के लिए तथा अर्थ-धर्म-कामभोग तीनों के लिए घात करते हैं । [८] वे हिंसक प्राणी कौन है ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु-मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक, मृगों को आकर्षित करने के लिए मृगियों का पालन करने वाले, सरोवर, हृद, वापी, तालाब, पल्लव, खाली करने वाले, जलाशय को सुखाने वाले, विष अथवा गरल को खिलाने वाले, घास एवं खेत को निर्दयतापूर्वक जलाने वाले, ये सब क्रूरकर्मकारी हैं। ये बहुत-सी म्लेच्छ जातियाँ भी हैं, जो हिंसक हैं । वे कौन-सी हैं ? शक, यवन, शबर, वब्बर, काय, मुरुंड, उद, भडक, तित्तिक, पक्कणिक, कुलाक्ष, गौड, सिंहल, पारस, क्रौंच, आन्ध्र, द्रविड़, विल्वल, पुलिंद, आरोष, डौंब, पोकण, गान्धार, बहलीक, जल्ल, रोम, मास, वकुश, मलय, चुंचुक, चूलिक, कोंकण, मेद, पण्हव, मालव, महुर, आभाषिक, अणक्क, चीन, ल्हासिक, खस, खासिक, नेहुर, मरहष्ट्र, मौष्टिक, आरब, डोबलिक, कुहण, कैकय, हूण, रोमक, रुरु, मरुक, चिलात, इन देशों के निवासी, जो पाप बुद्धि वाले हैं, वे जो अशुभ लेश्या-परिणाम वाले हैं, वे जलचर, स्थलचर, सनखपद. उरग. नभश्चर. संडासी जैसी चोंच वाले आदि जीवों का घात करके पनी आजीविका चलाते हैं । वे संज्ञी, असंज्ञी, पर्याप्त और अपर्याप्त जीवों का हनन करते हैं । वे पापी जन पाप को ही उपादेय मानते हैं । पाप में ही उनकी रुचि-होती है । वे प्राणिघात करके प्रसन्नता अनुभवते हैं । उनका अनुष्ठानप्राणवध करना ही होता है । प्राणियों की हिंसा की कथा में ही आनन्द मानते हैं । वे अनेक प्रकार के पाप का आचरण करके संतोष अनुभव करते हैं । (पूर्वोक्त मूढ़ हिंसक लोग) हिंसा के फल-विपाक को नहीं जानते हुए, अत्यन्त भयानक एवं दीर्घकाल पर्यन्त बहुत-से दुःखों से व्याप्त एवं अविश्रान्त-लगातार निरन्तर होने वाली दुःख रूप वेदना वाली नरकयोनि और तिर्यञ्चयोनि को बढ़ाते हैं ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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