SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जब श्रमण भगवान् महावीर के मुख से श्रेणिक राजा ने यह सुना और इस पर विचार किया तो हृदय में अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट हुआ और इस प्रकार प्रफुल्लित होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिणा और प्रदक्षिणा की, उनकी वन्दना की और नमस्कार किया । जहां धन्य अनगार था वहां जाकर उसने धन्य अनगार की तीन बार आदक्षिणा और प्रदक्षिणा की । वन्दना और नमस्कार किया तथा कहने लगा कि तुम धन्य हो, श्रेष्ठ पुण्य वाले हो, श्रेष्ठ कार्य करने वाले हो, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त हो और तुमने ही इस मनुष्य जीवन का श्रेष्ठ फल प्राप्त किया है । इस प्रकार स्तुति कर और फिर उनको नमस्कार कर वहां श्रमण भगवान् को तीन बार नमस्कार किया और वन्दना की । फिर जिस दिशा से आया था उसी दिशा में चला गया । [१२] तब उस धन्य अनगार को अन्यदा किसी समय मध्य रात्रि में धर्म-जागरण करते हुए इस प्रकार के आध्यात्मिक विचार उत्पन्न हुए कि मैं इस उत्कृष्ट तप से कृश हो गया हूं अतः प्रभात काल ही स्कन्दक के समान श्री भगवान् से पूछकर स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर चढ़कर अनशन व्रत धारण कर लूं । तदनुसार ही श्री भगवान् की आज्ञा ली और विपुलगिरि पर अनशन व्रत धार कर लिया । इस प्रकार एक मास तक इस अनशन व्रत को पूर्ण कर और नौ मास तक दीक्षा का पालन कर वह काल के समय काल करके चन्द्र से ऊंचे यावत् नव-ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तटों को उल्लङ्घन कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-रूप से उत्पन्न हो गया । तब स्थविर विपुलगिरि से नीचे उतर आये और भगवान् से कहने लगे कि हे भगवन् ! ये उस धन्य अनगार के वस्त्र-पात्र आदि उपकरण हैं । तब भगवान् गौतम ने श्री श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया कि हे भगवन् ! धन्य अनगार समाधि से काल कर कहां उत्पन्न हुआ है । हे गौतम ! धन्य अनगार समाधि-युक्त मृत्यु प्राप्त कर सर्वार्थसिद्ध विमान में देव-रूप से उत्पन्न हुआ । हे भगवन् ! धन्य देव की वहां कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! तेतीस सागरोपम की । गौतम ने प्रश्न किया कि देवलोक से च्युत होकर वह कहां जायगा और कहां पर उत्पन्न होगा ? भगवान् ने कहा कि वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो निर्वाण-पद प्राप्त कर सब दुःखों से विमुक्त हो जायगा। हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् ने तृतीय वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है । | वर्ग-३ अध्ययन-२ से १० [१३] हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी । उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी । वह धन-धान्य-सम्पन्ना थी । उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था। वह सर्वाङ्ग-सम्पन्न और सुरूपा था । पांच धाइयां उसके लालन पालन के लिये नित थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सुनक्षत्र कुमार के लिये भी आये और वह सर्व-श्रेष्ठ भवनों में सुख का अनुभव करता हुआ विचरण करने लगा । उसी समय श्री भगवान् महावीर काकन्दी नगरी के बाहर विराजमान हो गये । धन्यकुमार की तरह सुनक्षत्र कुमार भी धर्म कथा सूनने गए । थावच्चापुत्र की तरह प्रवजीत भी हुए । अनगार होकर वह ईर्या-समिति वाला और साधु के सब गुणों से युक्त पूर्ण ब्रह्मचारी हो गया । वह
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy