SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद को देखा यावत् हे कृष्ण ! वस्तुतः जिस तरह तुमने उस पुरुष का दुःख दूर करने में उसकी सहायता की, उसी तरह हे कृष्ण ! उस पुरुष ने भी अनेकानेक लाखों भवों के संचित कर्मों की राशि की उदीरणा करने में संलग्न गजसुकुमाल मुनि को उन कर्मों की संपूर्ण निर्जरा करने में सहायता प्रदान की है । कृष्ण वासुदेव फिर निवेदन करने लगे-"भगवन् ! मैं उस पुरुष को किस तरह पहचान सकता हूँ ?' भगवान् अरिष्टनेमि कहने लगे-'कृष्ण ! यहाँ से लौटने पर जब तुम द्वारका नगरी में प्रवेश करोगे तो उस समय एक पुरुष तुम्हें देखकर भयभीत होगा, वह वहाँ पर खड़ा-खड़ा ही गिर जाएगा । आयु की समाप्ति हो जाने से मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा । उस समय तुम समझ लेना कि यह वही पुरुष है ।' अरिष्टनेमि को वंदन एवं नमस्कार करके श्रीकृष्ण ने वहाँ से प्रस्थान किया और अपने प्रधान हस्तिरत्न पर बैठकर अपने घर की ओर खाना हुए । उधर उस सोमिल ब्राह्मण के मन में दूसरे दिन सूर्योदय होते ही इस प्रकार विचार उत्पन्न हुआनिश्चय ही कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि के चरणों में वंदन करने के लिये गये हैं । भगवान् तो सर्वज्ञ हैं उनसे कोई बात छिपी नहीं है । भगवान् ने गजसुकुमाल की मृत्यु सम्बन्धी मेरे कुकृत्य को जान लिया होगा, पूर्णतः विदित कर लिया होगा । यह सब भगवान् से स्पष्ट समझ सुन लिया होगा । अरिहंत अरिष्टनेमि ने अवश्यमेव कृष्ण वासुदेव को यह सब बता दिया होगा । तो ऐसी स्थिति में कृष्ण वासुदेव रुष्ट होकर मुझे न मालूम किस प्रकार की कुमौत से मारेंगे । इस विचार से डरा हुआ वह अपने घर से निकलता है, निकलकर द्वारका नगरी में प्रवेश करते हुए कृष्ण वासुदेव के एकदम सामने आ पड़ता है । उस समय सोमिल ब्राह्मण कृष्ण वासुदेव को सहसा सम्मुख देख कर भयभीत हुआ और जहाँ का तहाँ स्तम्भित खड़ा रह गया । वहीं खड़े-खड़े ही स्थितिभेद से अपना आयुष्य पूर्ण हो जाने से सर्वांग-शिथिल हो धड़ाम से भूमितल पर गिर पड़ा । उस समय कृष्ण वासुदेव सोमिल ब्राह्मण को गिरता हुआ देखते हैं और देखकर इस प्रकार बोलते हैं-"अरे देवानुप्रियो ! यही वह मृत्यु की इच्छा करने वाला तथा लज्जा एवं शोभा से रहित सोमिल ब्राह्मण है, जिसने मेरे सहोदर छोटे भाई गजसुकुमाल मुनि को असमय में ही काल का ग्रास बना डाला ।" ऐसा कहकर कृष्ण वासुदेव ने सोमिल ब्राह्मण के उस शव को चांडालों के द्वारा घसीटवा कर नगर के बाहर फिंकवा दिया और उस शब के स्पर्श वाली भूमि को पानी से धुलवाकर कृष्ण वासुदेव अपने राजप्रासाद में पहुंचे और अपने आगार में प्रविष्ट हुए । हे जंबू ! यावत् मोक्ष-सम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने अन्तकृदशांग सूत्र के तृतीय वर्ग के अष्टम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है । | वर्ग-३ अध्ययन-९ से १३ | [१४] “हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारकानामक नगरी थी, एक दिन भगवान् अरिष्टनेमि तीर्थंकर विचरते हुए उस नगरी में पधारे । वहाँ बलदेव राजा था । वर्णन समझ लेना । उस की धारिणी रानी थी । (वर्णन), उस धारिणीरानी ने सिंह का स्वप्न देखा, तदनन्तर पुत्रजन्म आदि का वर्णन गौतमकुमार की तरह जान लेना । विशेषता यह कि वह बीस वर्ष की दीक्षापर्यायवाला हुआ । शेष उसी प्रकार यावत् शत्रुजय पर्वत पर सिद्धि प्राप्त
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy