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________________ राजप्रश्नीय-१६ २१५ स्पर्श भी पूर्व में किये गये मणियों के वर्णन से भी अधिक इष्टतर यावत् रमणीय था । दिव्य यान-विमान की रचना करने के अनन्तर आभियोगिक देव सूर्याभदेव के पास आया । सूर्याभदेव को दोनों हाथ जोड़ कर यावत् आज्ञा वापस लौटाई । ___ आभियोगिक देव से दिव्य यान विमान के निर्माण समाचार सुनने के पश्चात् इस सूर्याभदेव ने हर्षित, संतुष्ट यावत् प्रफुल्लहृदय हो, जिनेन्द्र भगवान् के सम्मुख गमन करने योग्य दिव्य उत्तरवैक्रिय रूप की विकुर्वणा की । उनके अपने परिवार सहित चार अग्र महिषियों एवं गंधर्व तथा नाट्य इन दो अनीकों को साथ लेकर उस दिव्य यान-विमान की अनुप्रदक्षिणा करके पूर्व दिशावर्ती अतीव मनोहर त्रिसोपानों से दिव्य यान-विमान पर आरूढ हुआ और सिंहासन के समीप आकार पूर्व की ओर मुख करके उस पर बैठ गया । तत्पश्चात् सूर्याभ देव के चार हजार सामानिक देव उस यान विमान की प्रदक्षिणा करते हुए उत्तर दिग्वर्ती त्रिसोपान प्रतिरूपक द्वारा उस पर चढ़े और पहले से ही स्थापित भद्रासनों पर बैठे तथा दूसरे देव एवं देवियाँ भी प्रदक्षिणापूर्वक दक्षिण दिशा के सोपानों द्वारा उस दिव्य-यान विमान पर चढ़कर पहले से ही निश्चित भद्रासनों पर बैठे । उस दिव्य यान विमान पर सूर्याभदेव आदि देव-देवियों के आरूढ हो जाने के पश्चात् अनुक्रम से आठ अंगल-द्रव्य उसके सामने चले । स्वस्तिक, श्रीवत्स यावत् दर्पण | आठ मंगल द्रव्यों के अनन्तर पूर्ण कलश, शृंगार, चामर सहित दिव्य छत्र, पताका तथा इनके साथ गगन तल का स्पर्श करती हई अतिशय सुन्दर, आलोकदर्शनीय और वायु से फरफराती हई एक बहुत ऊंची विजय वैजयंती पताका अनुक्रम से उसके आगे चली । विजय वैजयंती पताका के अनन्तर वैडूर्यरत्नों से निर्मित दीप्यमान, निर्मल दंडवाले लटकती हई कोरंट पुष्पों को मालाओं से सुशोभित, चंद्रमंडल के समान निर्मल, श्वेत-धवल ऊंचा आतपत्र-छत्र और अनेक किंकर देवों द्वारा वहन किया जा रहा. मणिरत्नों से बने हए वेलवटों से उपशोभित, पादुकाद्वय यक्त पादपीठ सहित प्रवर-उत्तम सिंहासन अनक्रम से उसके आगे चला । तत्पश्चात् वज्ररत्नों से निर्मित गोलाकार कमनीय-मनोज्ञ, दांडे वाला, शेष ध्वजाओं में विशिष्ट एवं और दूसरी बहुत सी मनोरम छोटी बड़ी अनेक प्रकार की रंगबिरंगी पंचरंगी ध्वजाओं से परिमंडित, वायु वेग से फहराती हुई विजयवैजयंती पताका, छत्रातिछत्र से युक्त, आकाशमंडल को स्पर्श करने वाला हजार योजन ऊंचा एक बहुत बड़ा इन्द्रध्वज नामक ध्वज अनुक्रम से उसके आगे चला । इन्द्र ध्वज के अनन्तर सुन्दर वेष भूषा से सुसज्जित, समस्त आभूषणअलंकारों से विभूषित और अत्यन्त प्रभावशाली सुभटों के समुदायों को साथ लेकर पांच सेनापति अनुक्रम से आगे चले । तदनन्तर बहुत से आभियोगिक देव और देवियां अपनीअपनी योग्य-विशिष्ट वेशभूषाओं और विशेषतादर्शक अपने-अपने प्रतीक चिह्नों से सजधजकर अपने-अपने परिकर, अपने-अपने नेजा और अपने-अपने कार्यों के लिये कार्योपयोगी उपकरणों को साथ लेकर अनुक्रम से आगे चले । तत्पश्चात् सबसे अंत में उस सूर्याभ विमान में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियां अपनी अपनी समस्त ऋद्धि से, यावत् प्रतिध्वनि से शोभित होते हुए उस सूर्याभदेव के आगे-पीठे, आजू-बाजू में साथ-साथ चले । [१७] तत्पश्चात् पांच अनीकाधिपतियों द्वारा परिरक्षित वज्ररत्नमयी गोल मनोज्ञ संस्थानवाले यावत् एक हजार योजन लम्बे अत्यंत ऊंचे महेन्द्रध्वज को आगे करके वह सूर्याभदेव चार हजार सामानिक देवों यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों एवं सूर्याभविमानवासी और दूसरे वैमानिक देव-देवियों के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यनिनादों सहित दिव्य देवकृद्धि,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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