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________________ राजप्रश्नीय- १४ नयन जिसमें चिपक जायें । जिसका स्पर्श सुखप्रद और रूप शोभासम्पन्न हो । हिलने डुलने पर जिसमें लगी हुई घंटावलि से मधुर और मनोहर शब्द ध्वनि हो रही हो । जो वास्तुकला से युक्त होने के कारण शुभ कान्त और दर्शनीय हो । निपुण शिल्पियों द्वारा निर्मित, देदीप्यमान मणियों और रत्नों के घुंघरुओं से व्याप्त हो, एक लाख योजन विस्तार वाला हो । दिव्य तीव्रगति से चलने की शक्ति सामर्थ्य सम्पन्न एवं शीघ्रगामी हो । इस प्रकार के यान- विमान की विकुर्वणा - रचना करके हमें शीघ्र ही इसकी सूचना दो । २११ [१५] तदनन्तर वह आभियोगिक देव सूर्याभदेव द्वारा इस प्रकार का आदेश दिये जाने पर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ यावत् प्रफुल्ल हृदय हो दोनों हाथ जोड़ यावत् आज्ञा को सुना यावत् उसे स्वीकार करके वह ईशानकोण में आया । वहाँ आकर वैक्रिय समुद्घात किया और संख्यात योजन ऊपर-नीचे लंबा दण्ड बनाया यावत् यथाबादर पुद्गलों को अलग हटाकर सारभूत सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण किया, ग्रहण करके दूसरी बार पुनः वैक्रिय समुद्घात करके अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर सन्निविष्ट यावत् दिव्यमान- विमान की विकुर्वणा करने में प्रवृत्त हो गया । इसके अनन्तर सर्वप्रथम आभियोगिक देवों ने उस दिव्य यान की तीन दिशाओं में विशिष्ट रूप तीन सोपानोंवाली तीन सोपान पंक्तियों की रचना की । इनकी नेम, वेदिका वज्ररत्नों से बनी हुई थी । रिष्ट रत्नमय इनके प्रतिष्ठान और वैडूर्य रत्नमय स्तम्भ थे । स्वर्णरजत मय फलक थे । लोहिताक्ष रत्नमयी इनमें सूचियां लगी थीं । वज्ररत्नों से इनकी संधियां भरी हुई थीं, चढ़ने-उतरने में अवलंगन के लिये अनेक प्रकार के मणिरत्नों से बनी इनकी अवलंबनबाहा थीं तथा ये त्रिसोपान पंक्तियां मन को प्रसन्न करने वाली यावत् असाधारण सुन्दर थी । इन दर्शनीय मनमोहक प्रत्येक त्रिसोपान - पंक्तियों के आगे तोरण बंधे हुए थे । वे तोरण से बने हुए थे । गिर न सकें, इस विचार से विविध प्रकार के मणिमय स्तंभों के ऊपर भली-भांति निश्चल रूप से बांधे गये थे । बीच के अन्तराल विविध प्रकार के मोतियों से निर्मित रूपकों से उपशोभित थे और सलमा सितारों आदि से बने हुए तारा-रूपकों से व्याप्त यावत् अतीव मनोहर थे । उन तोरणों के ऊपरी भाग में स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दिकावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्ययुगल और दर्पण, इन आठ-आठ मांगलिकों की रचना की । जो यावत् उन तोरणों के ऊपर स्वच्छ, निर्मल, सलौनी, रजतमय पट्ट से शोभित वज्रनिर्मित डंडियोंवाली, कमलों जैसी सुरभि गंध से सुगंधित, रमणीय, आह्लादकारी, दर्शनीय मनोहर अतीव मनोहर बहुत सी कृष्ण चामर ध्वजाओं यावत् श्वेत चामर ध्वजाओं की रचना की । उन तोरणों के शिरोभाग में निर्मल यावत् अत्यन्त शोभनीय रत्नों से बने हुए अनेक छत्रातिछत्रों पताकातिपताकाओं घंटायुगल, उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुंडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र कमलों के झूमकों को लटकाया । सोपानों आदि की रचना करने के अनन्तर उस आभियोगिक देव ने उस दिव्ययानविमान के अन्दर एकदम समतल भूमिभाग की विक्रिया की । वह भूभाग आलिंगपुष्कर मृदंग पुष्कर, पूर्ण रूप से भरे हुए सरोवर के ऊपरी भाग, करतल, चन्द्रमंडल, सूर्यमंडल, दर्पण मंडल अथवा शंकु जैसे बड़े-बड़े खीलों को ठोक और खींचकर चारों ओर से सम किये गये भेड़, बैल, सुअर, सिंह, व्याघ्र, बकरी और भेड़िये के चमड़े के समान अत्यन्त रमणीय एवं सम था । वह सम भूमिभाग अनेक प्रकार के वर्त, प्रत्यावर्त्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, पुष्पमाणव, शरावसंपुट,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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