SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ औपपातिक-५१ २०१ ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो ये मनुष्य होते हैं, जैसे-सर्वकामविरत, सर्वरागविरत, सर्व संगातीत, सर्वस्नेहातिक्रान्त, अक्रोध, निष्क्रोध, क्रोधोदयरहित, क्षीणक्रोध, इसी प्रकार जिनके मान, माया, लोभ क्षीण हो गये हों, वे आठों कर्म-प्रकृतियों का क्षय करते हुए लोकाग्र में प्रतिष्ठित होते हैं मोक्ष प्राप्त करते हैं । [५२] भगवन् ! भावितात्मा अनगार केवलि-समुदघात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं । भगवन् ! क्या उन निर्जरा-प्रधान पुद्गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है । भगवन् ! छद्मस्थ, विशिष्टज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरापुद्गलों के वर्णरूप से वर्ण को, गन्धरूप से गन्ध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्शरूप से स्पर्श को जानता है ? देखता है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है । भगवन् ! यह किस अभिप्राय से कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्ण रूप वर्ण को, गन्ध रूप से गन्ध को, रस रूप से रस को तथा स्पर्श रूप से स्पर्श को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता । गौतम ! यह जम्बूद्वीप सभी द्वीपों तथा समुद्रों के बिलकुल बीच में स्थित है । यह आकार में सबसे छोटा है, गोल है । तैल में पके हुए पूए के समान, रथ के पहिये के सदृश, कमल-कर्णिका की तरह और पूर्ण चन्द्रमा के आकार के समान गोलाकार है । एक लाख योजन-प्रमाण लम्बा-चौड़ा है । इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष तथा साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । एक अत्यधिक ऋद्धिमान्, द्युतिमान्, अत्यन्त बलवान्, महायशस्वी, परम सुखी, बहुत प्रभावशाली देव चन्दन, केसर आदि विलेपनोचित सुगन्धित द्रव्य से परिपूर्ण डिब्बा लेता है, लेकर उसे खोलता है, उस सुगन्धित द्रव्य को सर्वत्र बिखेरता हुआ तीन चुटकी बजाने जितने समय में समस्त जम्बू द्वीप की इक्कीस परिक्रमाएँ कर तुरन्त आ जाता है । समस्त जम्बूद्वीप उन घ्राण-पुद्गलों से स्पृष्ट होता है ? हाँ, भगवन् ! होता है । गौतम ! क्या छद्मस्थ मनुष्य घ्राण-पुद्गलों को वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी जान पाता है ? देख पाता है ? भगवन् ! ऐसा संभव नहीं है । गौतम ! इस अभिप्राय से यह कहा जाता है कि छद्मस्थ मनुष्य उन खिरे हुए पुद्गलों के वर्ण रूप से वर्ण आदि को जरा भी नहीं जानता, नहीं देखता । आयुष्यमान् श्रमण ! वे पुद्गल इतने सूक्ष्म कहे गये हैं । वे समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित रहते हैं । भगवन् ! केवली किस कारण समुद्घात करते हैं-गौतम ! केवलियों के वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र ये चार कर्मांश अपरिक्षीण होते हैं, उनमें वेदनीय कर्म सबसे अधिक होता है, आयुष्य कर्म सबसे कम होता है, बन्धन एवं स्थिति द्वारा विषम कर्मों को वे सम करते हैं । यों बन्धन और स्थिति से विषम कर्मों को सम करने हेतु केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं, समुद्घात करते हैं । [५३] भगवन् ! क्या सभी केवली समुद्घात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त होकर सिद्ध गति को प्राप्त हुए हैं । [५४] भगवन् ! आवर्जीकरण का प्रक्रियाक्रम कितने समय का कहा गया है ? गौतम! वह असंख्येय समयवर्ती अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है । भगवन् ! केवली-समुद्घात कितने समय का कहा गया है ? गौतम ! आठ समय का है । जैसे-पहले समय में केवली आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में करते हैं । दूसरे समय में वे आत्मप्रदेशों को
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy