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________________ औपपातिक-४९ १९५ के क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, रति, अरति, मायामृषा, तथा मिथ्यादर्शन-शल्य जीवन भर के लिए त्याग करते हैं । ___अकरणीय योग-क्रिया का जीवन भर के लिए त्याग करते हैं । अशन, पान, खादिम, स्वादिम, इन चारों का जीवन भर के लिए त्याग करते हैं । यह शरीर, जो इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोम, प्रेय, प्रेज्य, स्थैर्यमय, वैश्वासिक, सम्मत, बहुमत, अनुमत, गहनों की पेटी के समान प्रीतिकर है, इसे सर्दी न लग जाए, गर्मी न लग जाए, यह भूखा न रह जाए, प्यासा न रह जाए, इसे सांप न डस ले, चोर उपद्रुत न करें, डांस न काटें, मच्छर न काटें, वात, पित्त, (कफ) सन्निपात आदि से जनित विविध रोगों द्वारा, तत्काल मार डालनेवाली बीमारियों द्वारा यह पीड़ित न हो, इसे परिषह, उपसर्ग न हों, जिसके लिए हर समय ऐसा ध्यान रखते हैं, उस शरीर का हम चरम उच्छ्वास-निःश्वास तक व्युत्सर्जन करते हैं-संलेखना द्वारा जिनके शरीर तथा कषाय दोनों ही कृश हो रहे थे, उन पख्रिाजकों ने आहार-पानी का परित्याग कर दिया । कटे हुए वृक्ष की तरह अपने शरीर को चेष्टा-शून्य बना लिया । मृत्यु की कामना न करते हुए शान्त भाव से वे अवस्थित रहे । इस प्रकार उन पब्रिाजकों ने बहुत से चारों प्रकार के आहार अनशन द्वारा छिन्न किए-वैसा कर दोषों की आलोचना की-उनका निरीक्षण किया, उनसे प्रतिक्रान्त हुए, समाधि-दशा प्राप्त की । मृत्यु-समय आने पर देह त्यागकर ब्रह्मलोक कल्प में वे देव रूप में उत्पन्न हुए । उनके स्थान के अनुरूप उनकी गति बतलाई गई है । उनका आयुष्य दश सागरोपम कहा गया है । वे परलोक के आराधक है । अवशेष वर्णन पहले की तरह है । [५०] भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड पख्रिाजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है । भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड पब्रिाजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है, यह सच है । गौतम ! मैं भी ऐसा ही कहता हूँ, प्ररूपित करता हूँ । अम्बड पब्रिाजक के सम्बन्ध में सौ घरों में आहार करने तथा सौ घरों में निवास करने की जो बात कही जाती है, भगवन् ! उसमें क्या रहस्य है ? गौतम ! अम्बड प्रकृति से भद्र, परोपकारपरायण एवं शान्त है । वह स्वभावतः क्रोध, मान, माया एवं लोभ की हलकापन लिये हुए है । वह मृदुमार्दवसंपन्न, अहंकाररहित, आलीन, तथा विनयशील है । उसने दो-दो दिनों का उपवास करते हुए, अपनी भुजाएँ ऊँची उठाये, सूरज के सामने मुँह किये आतापना-भूमि में आतापना लेते हुए तप का अनुष्ठान किया । फलतः शुभ परिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्ध होती हई प्रशस्त लेश्याओं, उसके वीर्यलब्धि, वैक्रिय-लब्धि तथा अवधिज्ञान-लब्धि के आवरक कर्मों का क्षयोपशम हुआ । ईहा, अपोह, मार्गण, गवेषण, ऐसा चिन्तन करते हुए उसको किसी दिन वीर्य-लब्धि, वैक्रियलब्धि तथा अवधिज्ञानलब्धि प्राप्त हो गई । अतएव लोगों को आश्चर्य-चकित करने के लिए इनके द्वारा वह काम्पिल्यपुर में एक ही समय में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है । गौतम ! इसीलिए अम्बड पब्रिाजक के द्वारा काम्पिल्यपुर में सौ घरों में आहार करने तथा सौ घरों में निवास करने की बात कही जाती है । भगवन् ! क्या अम्बड पब्रिाजक आपके पास मुण्डित होकर अगारअवस्था से अनगारअवस्था प्राप्त करने में समर्थ है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है-अम्बड पब्रिाजक श्रमणोपासक है, जिसने जीव, अजीव आदि पदार्थों के स्वरूप को अच्छी तरह समझा है यावत् श्रमण
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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