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________________ विपाकश्रुत- २/४/४० १६१ भद्रा - प्रमुख पांच सौ राजाओं की श्रेष्ठ कन्याओं से विवाह हुआ । भगवान् महावीर पधारे । सुवासवकुमार ने श्रावकधर्म स्वीकार किया । पूर्वभव - गौतम ! कौशाम्बी नगरी थी । धनपाल राजा था । उसने वैश्रमणभद्र अनगार को निर्दोष आहार का दान दिया, उसके प्रभाव से मनुष्य- आयुष्य का बन्ध हुआ यावत् यहाँ सुवासकुमार के रूप में जन्म लिया है, यावत् इसी भव में सिद्धि - गति को प्राप्त हुए । अध्ययन- ५- 'जिनदास' [४१] हे जम्बू ! सौगन्धिका नगरी थी । नीलाशोक उद्यान था । सुकाल यक्ष का यक्षायतन था । अप्रतिहत राजा थे । सुकृष्णा उनकी भार्या थी । पुत्र का नाम महाचन्द्रकुमार था । अर्हद्दत्ता नाम की भार्या भी । जिनदास नाम का पुत्र था । भगवान् महावीर का पदार्पण हुआ । जिनदास ने द्वादशविध गृहस्थ धर्म स्वीकार किया । पूर्वभव - हे गौतम ! माध्यमिका नगरी थी । महाराजा मेघरथ थे । सुधर्मा अनगार को महाराजा मेघरथ ने भावपूर्वक निर्दोष आहार दान दिया, उससे मनुष्य भव के आयुष्य का बन्ध किया और यहाँ पर जन्म लेकर यावत् इसी जन्म में सिद्ध हुआ निक्षेप - पूर्ववत् । । अध्ययन - ६ - 'धनपति' [४२] हे जम्बू ! कनकपुर नगर था । श्वेताशोकनामक उद्यान था । वीरभद्र यक्ष का यक्षायतन था । राजा प्रियचन्द्र था, रानी सुभद्रादेवी थी । युवराज वैश्रमण कुमार था । उसका श्रीदेवी प्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था । महावीर स्वामी पधारे । युवराज के पुत्र धनपति कुमार ने भगवान् से श्रावकों के व्रत ग्रहण किए यावत् गौतम स्वामी ने उसके पूर्वभव की पृच्छा की । धनपतिकुमार पूर्वभव में मणिचयिका नगरी का राजा था। उसका नाम मित्र था । उसने संभूतिविजय नामक अनगार को शुद्ध आहार से प्रतिलाभित किया यावत् इसी जन्म में वह सिद्धिगति को प्राप्त हुआ । निक्षेप - पूर्ववत् । अध्ययन - ७- 'महाबल' [४३] हे जम्बू ! महापुर नगर था । रक्ताशोक उद्यान था । रक्तपाद यक्ष का आयतन था । महाराज बल राजा था । सुभद्रा देवी रानी थी । महाबल राजकुमार था । उसका रक्तवती प्रभृति ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ विवाह किया गया । महावीर स्वामी पधारे । महाबल राजकुमार का भगवान् से श्रावकधर्म अङ्गीकार करना, पूर्वभव पृच्छा - गौतम ! मणिपुर नगर था। वहाँ नागदेव गाथापति था । इन्द्रदत्त अनगार को निर्दोष आहार का दान देकर प्रतिलम्भित किया तथा उसके प्रभाव से मनुष्य आयुष्य का बन्ध करके यहाँ पर महाबल के रूप में उत्पन्न हुआ । तदनन्तर उसने श्रमणदीक्षा स्वीकार कर यावत् सिद्धगति को प्राप्त किया । निक्षेपपूर्ववत् कर लेना चाहिए । अध्ययन- ८ - भद्रनंदी [४४] सुघोष नगर था । देवरमण उद्यान था । वीरसेन यक्ष का यक्षायतन था । अर्जुन राजा था । तत्त्ववती रानी थी और भद्रनन्दी राजकुमार था । उसका श्रीदेवी आदि 6 11
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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