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________________ १३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद श्रेष्ठिकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । वहाँ बालभाव को पार करके युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, प्रव्रजित होकर, संयमपालन करके यावत् निर्वाण पद प्राप्त करेगा-निक्षेप पूर्ववत् । अध्ययन-३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-४-'शकट') [२४] जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया भन्ते ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने, जो यावत् निर्वाणप्राप्त हैं, यदि तीसरे अध्ययन का यह अर्थ कहा तो भगवान् ने चौथे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? तब सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा-हे जम्बू ! उस काल उस समय में साहजनी नाम की एक कृद्ध-भवनादि की सम्पत्ति से सम्पन्न, स्तिमित तथा समृद्ध नगरी थी । उसके बाहर ईशानकोण में देवरमण नाम का एक उद्यान था । उस उद्यान में अमोघनामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था | उस नगरी में महचन्द्र राजा था । वह हिमालय के समान दूसरे राजाओं से महान् था । उस महचन्द्र नरेश का सुषेण मन्त्री था, जो सामनीति, भेदनीति दण्डनीति और उपप्रदाननीति के प्रयोग को और न्याय नीतियों की विधि को जाननेवाला तथा निग्रह में कुशल था । उस नगर में सुदर्शना नाम की एक सुप्रसिद्ध गणिका-वेश्या रहती थी। उस नगरी में सुभद्र नाम का सार्थवाह था । उस सुभद्र सार्थवाह की निर्दोष सर्वाङ्गसुन्दर शरीरवाली भद्रा भार्या थी । सुभद्र सार्थवाह का पुत्र व भद्रा भार्या का आत्मज शकट नाम का बालक था । वह भी पंचेन्द्रियों से परिपूर्ण-सुन्दर शरीर से सम्पन्न था । उस काल, उस समय साहंजनी नगरी के बाहर देवरमण उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर पधारे । नगर से जनता और राजा निकले । भगवान् ने धर्मदेशना दी । राजा और प्रजा सब वापस लौट गए। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी श्री गौतम स्वामी यावत् राजमार्ग में पधारे । वहाँ उन्होंने हाथी, घोड़े और बहुतेरे पुरुषों को देखा । उन पुरुषों के मध्य में अवकोटकबन्धन से युक्त, कटे कान और नाक वाले यावत् उद्घोषणा सहित एक सस्त्रीक पुरुष को देखा । देखकर गौतम स्वामी ने पूर्ववत् विचार किया और भगवान् से आकर प्रश्न किया । भगवान् ने इस प्रकार कहा हे गौतम ! उस काल तथा उस समय में इसी जन्बूद्वीप अन्तर्गत भारतवर्ष में छगलपुर नगर था । वहाँ सिंहगिरि राजा राज्य करता था । वह हिमालयादि पर्वतों के समान महान् था । उस नगर में छणिक नामक एक छागलिक कसाई रहता था, जो धनाढ्य, अधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द था । उस छण्णिक छागलिक के अनेक अजो, रोझो, वृषभों, खरगोशो, मृगशिशुओं, शूकरो, सिंहो, हरिणो, मयूरो और महषि के शतबद्ध तथा सहस्रबद्ध यूथ, बाड़े में सम्यक् प्रकार से रोके हुए रहते थे । वहाँ जिनको वेतन के रूप में भोजन तथा रुपया पैसा दिया जाता था, ऐसे उसके अनेक आदमी अजादि और महिषादि पशुओं का संरक्षण-संगोपन करते हुए उन पशुओं को बाड़े में रोके रहते थे । अनेक नौकर पुरुष सैकड़ों तथा हजारों अजों तथा भैंसों को मारकर उनके मांसों को कैंची तथा छुरी से काट काट कर छण्णिक छागलिक को दिया करते थे । उसके अन्य अनेक नौकर उन बहत से बकरों के मांसों तथा महिषों के मांसों को तवों पर. कड़ाहों में, हांडों में अथवा कडाहियों या लोहे के पात्रविशेषों में, भूनने के पात्रों में, अंगारों
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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