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________________ ८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद देवानुप्रियो ! तुम जाओ और हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य मेघकुमार की पालकी को वहन करो । तत्पश्चात् वे उत्तम तरुण हजार कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट हुए और हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य मेघकुमार की शिविका को वहन करने लगे । तत्पश्चात् पुरुषसहस्त्रवाहिनी शिविका पर मेघकुमार के आरूढ होने पर, उसके सामने सर्वप्रथम यह आठ मंगलद्रव्य अनुक्रम से चले अर्थात् चलाये गये । वे इस प्रकार है स्वस्तिक श्रीवत्स नंदावर्त वर्धमान भद्रासन कलश मत्स्य और दर्पण । बहुत से धन के अर्थी जन, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, भांड आदि, कापालिक अथवा ताम्बूलवाहक, करों से पीडित, शंख बजानेवाले, चाक्रिक-चक्र नामक शस्त्र हाथ में लेने वाले या कुंभार तेली आदि, नांगलिक-गले में हल के आकार का स्वर्णाभूषण पहनने वाले, मुखमांगलिक-मीठी-मीठी बातें करने वाले, वर्धमान-अपने कंधे पर पुरुष को बिठाने वाले, पूष्यमानव-मागध-स्तुतिपाठक, खण्डिकगण-छात्रसमुदाय उसका इष्ट प्रिय मधुर वाणी से अभिनन्दन करते हुए कहने लगे हे नन्द ! जय हो, जय हो, हे, भद्र जय हो, जय हो ! हे जगत् को आनन्द देनेवाले ! तुम्हारा कल्याण हो । तुम नहीं जीती हुई पाँच इन्द्रियों की जीतो और जीते हुए साधुधर्म का पालन करो । हे देव ! विध्नों को जीत कर सिद्धि में निवास करो । धैर्यपूर्वक कमर कस कर, तप के द्वारा राग-द्वेष रूपी मल्लों का हनन करो । प्रमादरहित होकर उत्तम शुक्लध्यान के द्वारा आठ कर्म रूपी शत्रुओं का मर्दन करो । अज्ञानान्धकार से रहित सर्वोत्तम केवलज्ञान को प्राप्त करो । परीषह रूपी सेना का हनन करके, परीषहों और उपसर्गों से निर्भय होकर शाश्वत एवं अचल परमपद रूप मोक्ष को प्राप्त करो । तुम्हारे धर्मसाधन में विन न हो । उस प्रकार कह कर वे पुनः पुनः मंगलमय 'जयजय' शब्द का प्रयोग करने लगे । तत्पश्चात् मेघकुमार राजगृह के बीचों-बीच होकर निकला । निकल कर जहाँ गुणशील चैत्य था, वहां आया आकर पुरुषसहस्त्रवाहिनी पालकी से नीचे उतरा ।। [३४] मेषकुमार के माता-पिता मेघकुमार को आगे करके जहाँ श्रमण भगवान् महावीर थे, वहाँ आकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दक्षिण तरफ से आरंभ करके प्रदक्षिणा करते हैं । वन्दन करते हैं, नमस्कार करते हैं । फिर कहते हैं - हे देवानुप्रिय ! यह मेघकुमार हमारा इकलौता पुत्र है । प्राणों के समान और उच्छ्वास के समान है । हृदय को आनन्द प्रदान करनेवाला है । गूलर के पुष्प के समान इसका नाम श्रवण करना भी दुर्लभ है तो दर्शन की बात क्या है ? जैसे उत्पल, पद्म अथवा कुमुद कीच में उत्पन्न होता ह और जल में वृद्धि पाता है, फिर भी पंक की रज से अथवा जल की रज से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार मेघकुमार कामों में उत्पन्न हुआ और भोगों में वृद्धि पाया है, फिर भी काम-रज से लिप्त नहीं हुआ, भोगरज से लिप्त नहीं हुआ । यह मेघकुमार संसार के भय से उद्विग्न हुआ है और जन्म जरा मरण से भयभीत हुआ है । अतः देवानुप्रिय (आप) के समीप मुंडित होकर, गृहत्याग करके साधुत्व की प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता है । हम देवानुप्रिय को शिष्यभिक्षा देते हैं । हे देवानुप्रिय ! आप शिष्यभिक्षा अंगीकार कीजिए। तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर ने मेघकुमार के माता-पिता द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर इस अर्थ को सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया । तत्पश्चात् मेधकुमार श्रमण भगवान् महावीर के पास से ईशान दिशा के भाग में गया । जाकर स्वयं ही आभूषण, माला और
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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