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________________ ८० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद विभूषित किया । फिर जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आया । आकर, दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा से इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रिय ! मुझे जो करना है, उसकी आज्ञा दीजिए।' तब श्रेणिक राजा ने नाई से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय ! तुम जाओ और सुगंधित गंधोदक से अच्छी तरह हाथ पैर धो लो । फिर चार तह वाले श्वेत वस्त्र से मुँह बाँधकर मेघकुमार के बाल दीक्षा के योग्य चार अंगुल छोड़कर काट दो ।' तत्पश्चात् वह नापित श्रेणिक राजा के ऐसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट और आनन्दितहृदय हुआ । उसने यावत् श्रेणिक राजा का आदेश स्वीकार किया । स्वीकार करके सुगंधित गंधोदक से हाथ-पैर धोए । हाथ-पैर धोकर शुद्ध वस्त्र से मुँह बाँधा । बाँधकर बड़ी सावधानी से मेघकुमार के चार अंगुल छोड़कर दीक्षा के योग्य केश काटे । उस समय मेघकुमार की माताने उन केशों को बहुमूल्य और हंस के चित्र वाले उज्जवल वस्त्र में ग्रहण किया । ग्रहण करके न्हें सुगंधित गंधोधकर से धोया । फिर सरस गोशीर्ष चन्दन उन पर छिड़क कर उन्हें श्वेत वस्त्र में बाँधा । बाँध कर रत्न की डिबिया में रखा । रख कर उस डिबिया को मंजूषा में रखा । फिर जल की धार, निर्गुडी के फूल एवं टूटे हुए मोतियों के हार के समान अश्रुधार प्रवाहित करती-करती, रोती-रोती, आक्रन्दन करती-करती और विलाप करती-करती इस प्रकार कहने लगी-'मेघकुमार के केशों का यह दर्शन राज्यप्राप्ति आदि अभ्युदय के अवसर पर, उत्सव के अवसर पर, प्रसव के अवसर पर, तिथियों के अवसर पर, इन्द्रमहोत्सव आदि के अवसर पर, नागपूजा आदि के अवसर पर तथा कार्तिकी पूर्णिमा आदि पर्वो के अवसर पर हमें अन्तिम दर्शन रूप होगा। तात्पर्य यह है कि इन केशों का दर्शन, केशरहित मेघकुमार का दर्शन रूप होगा ।' इस प्रकार कहकर धारिणी ने वह पेटी अपने सिरहाने के नीचे रख ली । तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिताने उत्तराभिमुख सिंहासन रखवाया । फिर मेघकुमार को दो-तीन बार श्वेत और पीत अर्थात् चाँदी और सोने के कलशों से नहलाया । नहला कर रोएँदार और अत्यन्त कोमल गंधकाषाय वस्त्र से उसके अंग पीछे । पोंछकर सरस गोशीर्ष चन्दन से शरीर पर विलेपन किया । विलेपन करके नासिका के निश्वास की वायु से भी उड़ने योग्यअति बारीक तथा हंस-लक्षण वाला वस्त्र पहनाया । पहनाकर अठारह लड़ों का हार पहनाया, नौ लड़ों का अर्द्धहार पहनाया, फिर एकावली, मुक्तावली, कनकावली, रत्नावली, प्रालंब पादप्रलम्ब, कड़े, तुटिक, केयूर, अंगद, दसों उंगलियों में दस मुद्रिकाएँ, कंदोरा, कुंडल, चूडामणि तथा रत्नजटित मुकुट पहनाये । यह सब अलंकार पहनाकर पुष्पमाला पहनाई । फिर दर्दर में पकाए हुए चन्दन के सुगन्धित तेल की गंध शरीर पर लगाई । तत्पश्चात् मेघकुमार को सूत से गूंथों हुई, पुष्प आदि से बेढ़ी हुई, बांस की सलाई आकि से पूरित की गई तथा वस्तु के योग से परस्पर संघात रूप की हुई-इस तरह चार प्रकार की पुष्प मालाओं से कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित किया । तत्पश्चात् राजा श्रेणिक ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-देवानुप्रिय ! तुम शीघ्र ही एक शिविका तैयार करो जो अनेक-सैकड़ों स्तंभों से बनी हो, जिसमें क्रीड़ा करती हुई पुतलियाँ बनी हों, ईहामृग, वृषभ, तुरग-धोड़ा, नर, मगर, विहग, सर्प, किन्र, रुरु, सरभ, चरमरी गाय, कुञ्जर, वनलता और पद्मलता आदि के चित्रों की रचना से युक्त झे, जिससे
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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