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________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/२५ ७१ लटकाओ । गणिकाएँ जिनमें प्रधान हों ऐसे पात्रों से नाटक करवाओ । अनेक तालाचरों से नाटक करवाओ । ऐसा करो कि लोग हर्षित होकर क्रीड़ा करें । उस प्रकार यथायोग्य दस दिन की स्थितिपतिका करो-कराओ मेरी यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो । राजा श्रेणिक का यह आदेश सुनकर वे इसी प्रकार करते हैं और राजाज्ञा वापिस करते हैं । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा बाहर की उपस्थानशाला में पूर्व की ओर मुख करके, श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा और सैकड़ों हजारों और लाखों के द्रव्य से याग किया एवं दान दिया । उसने अपनी आय में से अमुक भाग दिया और प्राप्त होनेवाले द्रव्य को ग्रहण करता हुआ विचरने लगा । तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन जातकर्म किया । दूसरो दिन जागरिका किया । तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य का दर्शन कराया । उस प्रकार अशुचि जातकर्म की क्रिया सम्पन्न हुई । फिर बारहवाँ दिन आया तो विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम वस्तुएँ तैयार करवाई । तैयार करवाकर मित्र, बन्धु आदि ज्ञाति, पुत्र आदि निजक जन, काका आदि स्वजन, श्वसुर आदि सम्बन्धी जन, दास आदि परिजन,सेना और बहुत से गणनायक, दंडनायक यावत् को आमंत्रण दिया । उसके पश्चात् स्नान किया, बलिकर्म किया, मसितिलक आदि कौतुक किया, यावत् समस्त अलंकारों से विभूषित हुए । फिर बहुत विशाल भोजन-मंडप में उस अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन का मित्र, ज्ञाति आदि तथा गणनायक आदि के साथ आस्वादन, विस्वादन, परस्पर विभाजन और परिभोग करते हुए विचरने लगे । इस प्रकार भोजन करने के पश्चात् शुद्ध जल से आचमन किया । हाथ-मुख धोकर स्वच्छे हुए, परम शुचि हुए । फिर उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धीजन, परिजन आदि तथा गणनायक आदि का विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया । सत्कार-सन्मान करके इस प्रकार कहा-क्योंकि हमारा यह पुत्र जब गर्भ में स्थित था, तब इसकी माता को अकालमेघ सम्बन्धी दोहद हुआ था । अतएव हमारे इस पुत्र का नाम मेघकुमार होना चाहिए । इस प्रकार माता-पिता ने गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम क्खा । तत्पश्चात् मेघकुमार पाँच धायों द्वारा ग्रहण किया गया-पाँच धाएँ उसका लालनपोषण करने लगीं । वे इस प्रकार थीं- क्षीरधात्री मंडनधात्री मजनधात्री क्रीड़ापनधात्री अंकधात्रीइनके अतिरिक्त वह मेधकुमार अन्यान्य कुब्जा, चिलातिका, वामन, वडभी, बर्बरी, बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविक देश की, ईसिनिक, धोरुकिन, ल्हासक देश की, लकुस देश की, द्रविड देश की, सिंहल देश की, अरब देस की, पुलिंद देश की, पक्कण देश की, पारस देश की, बहल देश की मुरुंड देश की, शबर देश की, इस प्रकार नाना देशों की, परदेश-अपने देश से भिन्न राजगृह को सुशोभित करनेवाली, इंगित, चिन्तित और प्रार्थित को जाननेवाली, अपने-अपने देश के वेष को धारण करनेवाली, निपुणों में भी अतिनिपुण, विनययुक्त दासियों के द्वारा तथा स्वदेसीय दासियों द्वारा और वर्षघरों, कंचुकियों और महत्तरकों के समुदाय से धिरा रहने लगा । वह एक के हाथ से दूसरे के हाथ में जाता, एक की गोद से दूसरे की गोद में जाता, गा-गाकर बहलाया जाता, उंगली पकड़कर चलाया जाता, क्रीडा आदि से लालन-पालन किया जाता एवं रमणीय मणिजटित फर्श पर चलाया जाता हुआ वायुहति और व्याघातरहित गिरिगुफा में स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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