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________________ ६० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद निकला जैसे उज्जवल महामेघों में से चन्द्रमा निकला हो । बाह्या उपस्थानशाला थी, वहीं आया और पूर्व दिशा की ओर मुख करके श्रेष्ठ सिहासन पर आसीन हुआ । श्रेणिक राजा अपने समीप ईशानकोण में श्वेत वस्त्र से आच्छादित तथा सरसों के मांगलिक उपचार से जिनमें शान्तिकर्म किया गया है, ऐसे आठ भद्रासन रखवाता है । नाना मणियों और रत्नों से मंडित, अतिशय दर्शनीय, बहुमूल्य और श्रेष्ठनगर में बनी हुई कोमल एवं सैंकड़ो प्रकार की रचना वाले चित्रों का स्थानभूत, ईहामृग, वृषभ, अश्व, नर, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रु जाति के मृग, अष्टापद, चमरो गाय, हाथी, वनलता और पद्मलता आदि के चित्रों से युक्त, श्रेष्ठ स्वर्ण के तारों से भरे हुए सुशोभित किनारों वाली जवनिका सभा के भीतरी भाग में बँधवाई । धारिणी देवी के लिए एक भद्रासन रखवाया । वह भद्रासन आस्तरक और कोमल तकिया से ढका था । श्वेत वस्त्र उस पर बिछा हुआ था । सुन्दर था । स्पर्श से अंगों को सुख उत्पन्न करनेवाला था और अतिशय मृदु था । राजा ने कोटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया। और कहा-देवानुप्रियों ! अष्टांग महानिमित्त-तथा विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्नपाठकों को शीघ्र ही बुलाओ और शीघ्र ही इस आज्ञा को वापिस लौटाओ । तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष श्रेणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित यावत् आनन्दित-हृदय हुए । दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को इकट्ठा करके मस्तक पर घुमा कर अंजरि जोड़कर 'हे देव ! ऐसा ही हो' इस प्रकार कह कर विनय के साथ आज्ञा के वचनों को स्वीकार करते हैं और स्वीकार करके श्रेणिक राजा के पास से निकलते हैं । निकल कर राजगृह के बीचोंबीच होकर जहाँ स्वप्नपाठकों के घर थे, वहाँ पहुंचते है और पहुंच कर स्वप्नपाठकों को बुलाते है । तत्पश्चात् वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये जाने पर हष्ट-तुष्ट यावत् आनन्दितहृदय हुए । उन्होनें स्नान किया, कुलदेवता का पूजन किया, यावत् कौतुक और मंगल प्रायश्चित किया । अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत किया, मस्तक पर दूर्वा तथा सरसों मंगल निमत्त धारण किये । फिर अपने-अपने घरों से निकले । राजगृह के बीचोंबीच होकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार पर आये। एक साथ मिलकर श्रेणिक राजा के मुख्य महल के द्वार के भीतर प्रवेश किया । प्रवेश करके जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी और जहां श्रेणिक राजा था, वहाँ आये । आकर श्रेणिक राजा को जय और विजय शब्दों से वधाया । श्रेणिक राजा ने चन्दनादि से उनकी अर्चना की, गुणों की प्रशंसा करके वन्दन किया, पुष्पों द्वारा पूजा की, आदरपूर्ण दृष्टि से देख कर एवं नमस्कार करके मान किया, फल-वस्त्र आदि देकर सत्कार किया और अनेक प्रकार की भक्ति करके सम्ना किया । फिर वे स्वप्नपाठक पहले से बिछाए हुए भद्रासनों पर अलग-अलग बैठे । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने जवनिका के पीछे धारिणी देवी को बिठलाया । फिर हाथों में पुष्प और फल लेकर अत्यन्त विनय के साथ स्वप्नपाठकों से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! आज उस प्रकार की उस शय्या पर सोई हुई धारिणी देवी यावत् महास्वप्न देखकर जागी है। तो देवानुप्रियो ! इस उदार यावत् सश्रीक महास्वप्न का क्या कल्याणकारी फल-विशेष होगा? तत्पश्चात् वे स्वप्नपाठक श्रेणिक राजा का यह कथन सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट, तृष्ट, आनन्दितहृदय हुए । उन्होंने उस स्वप्न का सम्यक् प्रकार से अवग्रहण किया । ईहा में प्रवेश किया, प्रवेश करके परस्पर एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श किया । स्वप्न का आपसे
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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