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________________ ३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद यथा-ऋज्वायता यावत् अर्द्धचक्रवाला । एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होता है तो दो समय की उभयतोवक्रा श्रेणी से एक प्रतर में अनुश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है, तो तीन समय की और यदि वह विश्रेणी से उत्पन्न होने योग्य है तो चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । हे गौतम ! इसी कारण मैंने कहा है । इसी प्रकार से पूर्वी-चस्मान्त में समुद्घात करके दक्षिणचरमान्त में यावत् पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक, पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में भी उपपात का कथन करना चाहिए । इन सभी में यथायोग्य दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति कहनी चाहिए । भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके लोक के पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह एक, दो, तीन अथवा चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है । भगवन् ! किस कारण से ? गौतम ! पूर्ववत्, जैसे पूर्वीचरमान्त में समुद्घात करके पूर्वी-चरमान्त में ही उपपात का कथन किया, वैसे ही पूर्वीचरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम-चरमान्त में सभी के उपपात का कथन करना चाहिए । भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वी-चरमान्त में समुद्गात करके लोक के उत्तर-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव में उत्पन्न होने योग्य है तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में उपपात समान पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके उत्तर-चस्मान्त में उपपात का कथन करना चाहिए । __ भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके लोक के दक्षिण-चरमान्त में ही अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वी-चरमान्त में ही उपपात के समान दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में ही उत्पन्न होने योग्य का उपपात कहना चाहिए । इसी प्रकार यावत् पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का, पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों में दक्षिण-चरमान्त तक उपपात कहना चाहिए । इसी प्रकार दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम-चरमान्त में उपपात का कथन करना । विशेष यह है कि इनमें दो, तीन या चार समय की विग्रहगति होती है । शेष पूर्ववत् । स्वस्थान में उपपात के समान दक्षिण-चरमान्त में समुद्घात करके उत्तर-चरमान्त में उपपात का तथा एक, दो, तीन या चार समय की विग्रहगति का कथन करना । पश्चिम-चरमान्त में उपपात के समान पूर्वीय-चरमान्त में भी दो. तीन या चार समय की विग्रहगति से उपपात का कथन करना। पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम चस्मान्त में ही उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक के लिए स्वस्थान में उपपात के अनुसार कथन करना । उत्तर-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव के एक समय की विग्रहगति नहीं होती । शेष पूर्ववत् । पूर्वी-चरमान्त में उपपात का कथन स्वस्थान में उपपात के समान है । दक्षिण-चरमन्त में उपपात में एक समय की विग्रहगति नहीं होती । शेष पूर्ववत् । उत्तर-चस्मान्त में समुद्घात करके उत्तर-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव का कथन स्वस्थान में उपपात के समान जानना । इसी प्रकार उत्तर
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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