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________________ ३० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! एक समय, दो समय अथवा तीन समय की इत्यादि शेष पूर्ववत्, इस कारण...तक कहना चाहिए । इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का पूर्वदिशा के चरमान्त में मत्य प्राप्त कर पश्चिमदिशा के चरमान्त में बादर अपर्याप्त पथ्वीकायिक-रूप से उपपात कहना । और वहीं पर्याप्त रूप से उपपात कहना चाहिए । इसी प्रकार अप्कायिक जीव के भी चार आलापक कहना-सूक्ष्मअपर्याप्तक का, सूक्ष्म पर्याप्तक का, बादर-अपर्याप्तक का तथा बादर पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए । इसी प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक और पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए । भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, जो इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके मनुष्य-क्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत् कहना । इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप से उपपात का कथन करना । सूक्ष्म और बादर अप्कायिक समान सूक्ष्म और बादर वायुकायिक का उपपात कहना । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों के उपपात के विषय में भी कहना | भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इत्यादि प्रश्न ? गौतम ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव भी रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात से क्रमशः इन बीस स्थानों में बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक तक, उपपात कहना। इसी प्रकार अपर्याप्त बादरै पृथ्वीकायिक का उपपात भी कहना । इसी प्रकार पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक के उपपात को जानना । इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के चार गमकों द्वारा पूर्व-चरमान्त में मरणसमुद्घातपूर्वक मरकर इन्हीं पूर्वोक्त बीस स्थानों में पूर्ववत् का कथन करना। अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों का भी इन्हीं बीस स्थानों में पूर्वोक्तरूप से उपपात कहना । भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त पृथ्वीकायिक-रूप से उत्पन्न होने योग्य है, हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत् इस कारण से वह...तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है, तक कहना । इसी प्रकार चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में भी पूर्ववत् उपपात कहना । चार प्रकार के अप्कायिकों में भी इसी प्रकार उपपात कहना । सूक्ष्मतेजस्कायिक जीव के पर्याप्तक और अपर्याप्तक में भी इसी प्रकार उपपात कहना । भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत् कहना । इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उपपात का भी कथन करना । पृथ्वीकायिक जीवों के उपपात के समान चार भेदों से, वायुकायिक तथा वनस्पतिकायिक रूप से उपपात का कथन करना । इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक का भी समय क्षेत्र में समुद्घात करके इन्हीं बीस स्थानों में उपपात का कथन करना । अपर्याप्त के उपपात समान पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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