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________________ २४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद समझना । परन्तु कृष्णलेश्या के उद्देशक समान परिमाण यहाँ भी समझना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।। | शतक-३१ उद्देशक-४ | [१००६] भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमित नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण नैरयिकों के समान जानना। विशेष यह है कि इनका उपपात रत्नप्रभा में होता है । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में भी जानना । इसी प्रकार चारों युग्मों जानना । विशेष यह कि परिमाण कृष्णलेश्या वाले उद्देशक अनुसार कहना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' | शतक-३१ उद्देशक-५ ॥ [१००७] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक गमक के समान जानना यावत् ये परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका समग्र कथन पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी तक कहना चाहिए । इसी प्रकार भवसिद्धिक क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण नैरयिक के विषय में भी तथा कल्योज पर्यन्त जानना । किन्तु परिमाण पूर्वकथित प्रथम उद्देशक अनुसार जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-३१ उद्देशक-६ [१००८] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक क्षुद्रकृतयुग्म-प्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक कृष्णलेश्याउद्देशक समान जानना । चारों युग्मों में इसका कथन करना चाहिए । भगवन् ! अधःसप्तमपृथ्वी के कृष्णलेश्यी क्षुद्रकल्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' । | शतक-३१ उद्देशक-७ | [१००९] नीललेश्या वाले भवसिद्धिक नैरयिक के चारों युग्मों का कथन औधिक नीललेश्या अनुसार समझना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' | शतक-३१ उद्देशक-८ । [१०१०] कापोतलेश्यी भवसिद्धिक नैरयिक के चारों ही युग्मों का कथन औधिक कापोत उद्देशक अनुसार कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' | शतक-३१ उद्देशक-९ से १२ [१०११] भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार उद्देशक समान अभवसिद्धिक-सम्बन्धी चारों उद्देशक कापोतलेश्या उद्देशकों तक कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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