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________________ २२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उद्देशकानुसार परम्परोपपत्रक नैरयिक आदि (नारक से वैमानिक तक) हैं और उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समग्र उद्देशक तीन दण्डक सहित करना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । | शतक-३० उद्देशक-४ से ११ | [१००२] इसी प्रकार और इसी क्रम से बन्धीशतक में उद्देशकों की जो परिपाटी है, वही परिपाटी यहां भी अचरम उद्देशक पर्यन्त समझना । विशेष यह कि 'अनन्तर' शब्द वाले चार उद्देशक एक गम वाले हैं । 'परम्पर' शब्द वाले चार उद्देशक एक गम वाले हैं । इसी प्रकार 'चरम' और 'अचरम' वाले उद्देशकों के विषय में भी समझना चाहिए, किन्तु अलेश्यी, केवली और अयोगी का कथन यहाँ नहीं करना चाहिए । शेष पूर्ववत् है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए । शतक-३० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (शतक-३१) उद्देशक-१ [१००३] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा-भगवन् ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! चार । यथा-कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज । भगवन् ! यह क्यों कहा जाता है कि क्षुद्रयुग्म चार हैं ? गौतम ! जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार रहें, उसे क्षुद्रकृतयुग्म कहते हैं । जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहें, उसे क्षुद्रत्र्योज कहते हैं । जिस राशि में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में दो शेष रहें, उसे क्षुद्रद्वापरयुग्म कहते हैं और जिस राशि में से चारचार का अपहार करते हुए अन्त में एक ही शेष रहे, उसे क्षुद्रकल्योज कहते हैं । इस कारण से हे गौतम ! यावत् कल्योज कहा है । भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिपरिमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यञ्चयोनिकों से ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते । इत्यादि व्युत्क्रान्तिपद के नैरयिकों के उपपात के अनुसार कहना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जिस प्रकार कोई कूदने वाला, कूदता-कूदता यावत् अध्यवसायरूप कारण से आगामी भव को प्राप्त करते हैं, इत्यादि पच्चीसवें शतक के आठवें उद्देशक में उक्त नैरयिक-सम्बन्धी वक्तव्यता के समान यहाँ भी कहना चाहिए कि यावत् वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते हैं । भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म-राशिप्रमाण रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औधिक नैरयिकों समान रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के लिए भी कि वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते, तक कहना । इसी प्रकार शर्कराप्रभा से लेकर अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए । व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार यहाँ भी उपपात जानना चाहिए । असंज्ञी जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप द्वितीय नरक तक और पक्षी तृतीय नरक तक उत्पन्न होते हैं, इत्यादि उपपात जानना । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! क्षुद्रत्र्योज-राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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