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________________ २२६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद सार्थवाह सुंसुमा दारिका को अटवी के सम्मुख ले जाती देखकर, पांचों पुत्रों के साथ छठा आप स्वयं कवच पहन कर, चिलात के पैरों के मार्ग पर चला । वह उसके पीछे-पीछे चलता हुआ, गर्जना करता हुआ, चुनौती देता हुआ, पुकारता हुआ, तर्जना करता हुआ और उस त्रस्त करता हुआ उसके पीछे-पीछे चलने लगा । चिलात ने देखा कि धन्य-सार्थवाह पांच पुत्रों के साथ आप स्वयं छठा सन्नद्ध होकर मेरा पीछा कर रहा है । यह देखकर निस्तेज, निर्बल, पराक्रमहीन एवं वीर्यहीन हो गया । जब वह सुंसुमा दारिका का निर्वाह करने में समर्थ न हो सका, तब श्रान्त हो गया-लानि को प्राप्त हुआ और अत्यन्त श्रान्त हो गया । अतएव उसने नील कमल के समान तलवार हाथ में ली और संसमा दारिका का सिर काट लिया । कटे सिर को लेकर वह उस अग्रामिक या दुर्गम अटवी में घुस गया । चिलात उस अग्रामिक अटवी में प्यास से पीड़ित होकर दिशा भूल गया। वह चोरपल्ली तक नहीं पहुँच सका और बीच में ही मर गया । इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो! जो साधु या साध्वी प्रव्रजित होकर जिससे वमन बहता यावत् विनाशशील इस औदारिक शरीर के वर्ण के लिए यावत् आहार करते हैं, वे इसी लोक में बहुत-से श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं की अवहेलना का पात्र बनते हैं और दीर्घ संसार में पर्यटन करते हैं, जैसे चिलात चोर अन्त में दुःखी हुआ । धन्य-सार्थवाह पांच पुत्रों के साथ आप छठा स्वयं चिलात के पीछे दौड़ता-दौड़ता प्यास से और भूख से श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया और बहुत थक गया । वह चोरसेनापति चिलात को अपने हाथ से पकड़ने में समर्थ न हो सका । तब वह वहाँ से लौट पड़ा, जहाँ सुसुमा दारिका को चिलात ने जीवन से रहित कर दिया था । उसने देखा कि बालिका सुंसुमा चिलात के द्वारा मार डाली गई है । यह देखकर कुल्हाड़े से काटे हुए चम्पक वृक्ष के समान या बंधनमुक्त इन्द्रयष्टि के समान धड़ाम से वह पृथ्वी पर गिर पड़ा । पांच पुत्रों सहित छठा आप धन्य-सार्थवाह आश्वस्त हुआ तो आक्रंदन करने लगा, विलाप करने लगा और जोर-जोर के शब्दों से कुह-कुह करता रोने लगा । वह बहुत देर तक आंसू बहाता रहा । पांच पुत्रों सहित छठे स्वयं धन्य-सार्थवाह ने चिलात चोर के पीछे चारों ओर दौड़ने के कारण प्यास और भख से पीडित होकर. उस अग्रामिक अटवी में सब तरफ जल की मार्गणा-गवेषणा की । वह श्रान्त हो गया, ग्लान हो गया, बहुत थक गया और खिन्न हो गया । उस अग्रामिक अटवी में जल की खोज करने पर भी वह कहीं जल न पा सका । तत्पश्चात् कहीं भी जल न पाकर धन्य-सार्थवाह, जहाँ सुसुमा जीवन से रहित की गई थी, उस जगह आया । उसने ज्येष्ठ पुत्र को बुलाकर कहा-'हे पुत्र ! सुसुमा दारिका के लिये चिलात तस्कर के पीछे-पीछे चारों ओर दौड़ते हुए प्यास और भूख से पीड़ित होकर हमने इस अग्रामिक अटवी में जल की तलाश की, मगर जल न पा सके । जल के बिना हम लोग राजगृह नहीं पहुँच सकते । अतएव हे देवानुप्रिय ! तुम मुझे जीवन से रहित कर दो और सब भाई मेरे मांस और रुधिर का आहार करो । आहार करके उस आहार से स्वस्थ होकर फिर इस अग्रामिक अटवी को पार कर जाना, राजगृह नगर पा लेना, मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, संबन्धियों और परिजनों से मिलना तथा अर्थ, धर्म और पुण्य के भागी होना ।' धन्य-सार्थवाह के इस प्रकार कहने पर ज्येष्ठपुत्र ने धन्य-सार्थवाह से कहा-'तात ! आप हमारे
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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