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________________ २०६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मानवीय उदार कामभोग भोगती हुई विचरेगी । तथापि मैं तुम्हारा प्रिय करने के लिए द्रौपदी देवी को अभी यहाँ ले आता हूँ।' इस प्रकार कह कर देव ने पद्मनाभ से पूछा । पूछ कर वह उत्कृष्ट देव-गति से लवणसमुद्र के मध्य में होकर जिधर हस्तिनापुर नगर था, उधर ही गमन करने के लिए उद्यत हुआ । उस काल और उस समय में, हस्तिनापुर नगर में युधिष्ठिर राजा द्रौपदी देवी के साथ महल की छत पर सुख से सोया हुआ था । उस समय वह पूर्वसंगतिक देव जहाँ राजा युधिष्ठिर था और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ पहुँच कर उसने द्रौपदी देवी को अवस्वापिनी निद्रा दी द्रौपदी देवी ग्रहण करके, देवोचित उत्कृष्ट गति से अमरकंका राजधानी में पद्मनाभ के भवन में आ पहुँचा । पद्मनाभ के भवन में, अशोकवाटिका में, द्रौपदी देवी को रख दिया । अवस्वापिनी विद्या का संहरण किया । जहाँ पद्मनाभ था, वहाँ आकर इस प्रकार बोला-'देवानुप्रिय ! मैं हस्तिनापुर से द्रौपदी देवी को शीघ्र ही यहाँ ले आया हूँ । वह तुम्हारी अशोकवाटिका में है । इससे आगे तुम जानो । इतना कह कर वह देव जिस ओर से आया था उसी ओर लौट गया । थोड़ी देर में जब द्रौपदी देवी की निद्रा भंग हुई तो वह अशोकवाटिका को पहचान न सकी । तब मन ही मन कहने लगी-'यह भवन मेरा अपना नहीं है, वह अशोक वाटिका मेरी अपनी नहीं है । न जाने किसी देव ने, दानव ने, किंपुरुष ने, किन्नर ने, महोरग ने, या गन्धर्व ने किसी दूसरे राजा की अशोकवाटिका में मेरा संहरण किया है । इस प्रकार विचार करके वह भग्न-मनोरथ होकर यावत् चिन्ता करने लगी । तदनन्तर राजा पद्मनाभ स्नान करके, यावत् सब अलंकारों से विभूषित होकर तथा अन्तःपुर के परिवार से परिवृत होकर, जहाँ अशोकवाटिका थी और जहाँ द्रौपदी देवी थी, वहाँ आया । उसने द्रौपदी देवी को भग्नमनोरथ एवं चिन्ता करती देख कर कहा-तुम भग्नमनोरथ होकर चिन्ता क्यों कर रही हो ? देवानुप्रिये ! मेरा पूर्वसांगतिक देव जम्बूद्वीप से, भारतवर्ष से, हस्तिनापुर नगर से और युधिष्ठिर राजा के भवन से संहरण करके तुम्हें यहाँ ले आया है । अतएव तुम हतमनःसंकल्प होकर चिन्ता मत करो । तुम मेरे साथ विपुल भोगने योग्य भोग भोगती हुई रहो । तब द्रौपदी देवी ने पद्मनाभ से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में द्वारवती नगरी में कृष्ण नामक वासुदेव मेरे स्वामी के भ्राता रहते हैं । सो यदि छह महीनों तक वे मुझे छुड़ाने के लिए यहाँ नहीं आएँगे तो मैं, हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी आज्ञा, उपाय, वचन और निर्देश में रहँगी ।' तब पद्मनाभ राजा ने द्रौपदी का कथन अंगीकार किया । द्रौपदी देवी को कन्याओं के अन्तःपुर में रख दिया । तत्पश्चात् द्रौपदी देवी निरन्तर षष्ठभक्त और पारणा में आयंबिल के तपःकर्म से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। [१७६] इधर द्रौपदी का हरण हो जाने के पश्चात् थोड़ी देर में युधिष्ठिर राजा जागे। वे द्रौपदी देवी को अपने पास न देखते हुए शय्या से उठे । सब तरफ द्रौपदी देवी की मार्गणा करने लगे । किन्तु द्रौपदी देवी की कहीं भी श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति न पाकर जहाँ पाण्डु राजा थे वहाँ पहुँचे । वहाँ पहुँचकर पांडु राजा से इस प्रकार बोले-हे तात ! मैं आकाशतल पर सो रहा था । मेरे पास द्रौपदी देवी को न जाने कौन देव, दानव, किन्नर, महोरग अथवा गंधर्व हरण कर गया, ले गया या खींच ले गया ! तो हे तात ! मैं चाहता हूँ कि द्रौपदी देवी की सब तरफ मार्गणा की जाय ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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