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________________ ज्ञाताधर्मकथा - १/-/११/१४२ १६५ दीक्षित होकर बहुत-से साधुओं, साध्विओं, श्रावकों और श्राविकाओं के प्रतिकूल वचनों को सम्यक् प्रकार से सहन करता हैं, यावत् विशेष रूप से सहन करता है, किन्तु बहुत-से अन्य तीर्थिकों के तथा गृहस्थों के दुर्वचन को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता हैं, यावत् विशेष रूप से सहन नहीं करता है, ऐसे पुरुष को मैंने देश - विराधक कहा है । आयुष्मन् श्रमणो ! जब समुद्र सम्बन्धी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, मंदवात और महावात बहती हैं, तब बहुत-से दावद्रव वृक्ष जीर्ण-से हो जाते हैं, झोड़ हो जाते हैं, यावत् मुरझाते - मुरझाते खड़े रहते हैं । किन्तु कोई-कोई दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित यावत् अत्यन्त शोभायमान होते हुए रहते हैं । इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणों ! जो साधु अथवा साध्वी दीक्षित होकर बहुत-से अन्यतीर्थिकों के और बहुत-से गृहस्थो के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है और बहुत-से साधुओं, साध्वियों, श्रावकों तथा श्राविकाओं के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता, उस पुरुष को मैंने देशाराधक कहा है। आयुष्मन् श्रमणो ! जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी एक भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् महावात नहीं बहती, तब सब दावद्रव वृक्ष जीर्ण सरीखे हो जाते हैं, यावत् मुरझाए रहते हैं । इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! जो साधु या साध्वी, यावत् प्रव्रजित होकर बहुत-से साधुओं, साध्वियों, श्रावकों, श्राविकाओं, अन्यतीथिकों एवं गृहस्थों दुर्वचन शब्दों को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता, उस है को मैंने सर्वविराधक कहा । जब द्वीप सम्बन्धी और समुद्र सम्बन्धी भी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, यावत् बहती हैं, तब सभी दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित, फलित यावत् सुशोभित रहते हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! इसी प्रकार जो साधु या साध्वी बहुत-से श्रमणो के, श्रमणियों के, श्रावकों के, श्राविकाओं के, अन्यतीर्थिकों के और गृहस्थों के दुर्वचन सम्यक् प्रकार से सहन करता है, उस पुरुष को मैंने सर्वाधिक कहा है। इस प्रकार हे गौतम! जीव आराधक और विराधक होते हैं । हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने ग्यारहवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है। वैसा ही मै कहता हूँ । 1 अध्ययन- ११- का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन- १२ - उदक [१४३] 'भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने ग्यारहवें ज्ञातअध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो बारहवें ज्ञात - अध्ययन का क्या अर्थ कहा हैं ?' हे जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी । उसके बाहर पूर्णभद्र नामक चैत्य था । उस चम्पा नगरी में जितशत्रु नामक राजा था । धारिणी नामक रानी थी, वह परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों वाली यावत् सुन्दर रूप वाली थी । जितशत्रु राजा का पुत्र और धारिणी देवी का आत्मज अदीनशत्रु नामक कुमार था । सुबुद्धि नामक मन्त्री था । वह ( यावत्) राज्य की धुरा का चिन्तक श्रमणोपासक और जीव- अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था । चम्पानगरी के बाहर ईशान दिशा में एक खाई में पानी था । वह मेद, चर्बी, मांस, रुधिर और पीब के समूह से युक्त था । मृतक शरीरों से व्याप्त था, यावत् वर्ण से अमनोज्ञ था । वह जैसे कोई सर्प का मृत कलेवर हो, गाय का कलेवर हो, यावत् मरे हुए, सड़े हुए,
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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