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________________ १४० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद देखी है । मल्ली नामक विदेह राजा की श्रेष्ठ कन्या जैसी सुन्दर है, वैसी दूसरी कोई देवकन्या, असुरकन्या, नागकन्या, यक्षकन्या, गंधर्वकन्या या राजकन्या नहीं है । तत्पश्चात् चन्द्रच्छाय राजा ने अर्हन्त्रक आदि का सत्कार-सम्मान करके विदा किया । तदनन्तर वणिकों के कथन से चन्द्रच्छाय को अत्यन्त हर्ष हुआ । उसने दूत को बुलाकर कहा- इत्यादि कथन सब पहले के समान ही कहना । भले ही वह कन्या मेरे सारे राज्य के मूल्य की हो, तो भी स्वीकार करना । दूत हर्षित होकर मल्ली कुमारी की मंगनी के लिए चल दिया । [८९] उस काल और उस समय में कुणाल नामक जनपद था । उस जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी थी । उसमें कुणाल देश का अधिपति रुक्मि नामक राजा था । रुक्मि राजा की पुत्री और धारिणी देवी की कूँख से जन्मी सुबाहु नामक कन्या थी । उसके हाथपैर आदि सब अवयव सुन्दर थे । वय, रूप, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीरवाली थी । उस सुबाहु बालिका का किसी समय चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया । तब कुणालधिपति रुक्मिराजा ने सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नानका उत्सव आया जाना । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा- 'हे देवानुप्रियो ! कल सुबाहु बालिका के चातुर्मासिक स्नान का उत्सव होगा । अतएव तुम राजमार्ग के मध्य में, चौक में जल और थल में उत्पन्न होनेवाले पांच वर्णों के फूल लाओ और एक सुगंध छोड़ने वाली श्रीदामकाण्ड छत में लटकाओ ।' यह आज्ञा सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार कार्य किया । तत्पश्चात् कुणाल देश के अधिपति रुक्मिराजा ने सुवर्णकारों की श्रेणी को बुलाकर कहा- 'हे देवानुप्रियों ! शीघ्र ही राजमार्ग के मध्य में, पुष्पमंडप में विविध प्रकार के पंचरंगे चावलों से नग का आलेखन करो - नगर का चित्रण करो । उसके ठीक मध्य भाग में एक पाट रखो ।' यह सुनकर उन्होंने इसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापस लौटाई । तत्पश्चात् कुणालाधिपति रुक्मि हाथी के श्रेष्ठ स्कन्ध पर आरूढ़ हुआ । चतुरंगी सेना, बड़े-बड़े योद्धाओं और अंतःपुर के परिवार आदि से परिवृत होकर सुबाहु कुमारी को आगे करके, जहाँ राजमार्ग था और जहाँ पुष्पमंडप था, वहाँ आया । हाथी के स्कन्ध से नीचे । उतर कर पुष्पमंडप में प्रवेश किया । पूर्व दिशा की ओर मुख करके उत्तम सिंहासन पर आसीन हुआ । तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने सुबाहु कुमारी को उस पाठ पर बिठा कर चाँदी और सोने आदि के कलशों से उसे स्नान कराया । सब अलंकारों से विभूषित किया । फिर पिता के चरणों में प्रणाण करने के लिए लाई । तब सुबाहु कुमारी रुक्मि राजा के पास आई । आकर उसने पिता के चरणों का स्पर्श किया । उस उमय रुक्मि राजा ने सुबाहु कुमारी को अपनी गोद में बिठा लिया । बिठा कर सुबाहु कुमारी के रूप, यौवन और लावण्य को देखने से उसे विस्मय हुआ । उसने वर्षधर को बुलाया । इस प्रकार कहा- 'हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे कार्य से बहुत-से ग्रामों, आकरों, नगरों यावत् सन्निवेशों में भ्रमण करते हो और अनेक राजाओं, राजकुमारों यावत् सार्थवाहों आदि के गृह में प्रवेश करते हो, तो तुमने कहीं भी किसी राजा या ईश्वर के यहाँ ऐसा मजनक पहले देखा हैं, जैसा इस सुबाहु कुमारी का मज्जनमहोत्सव है ?' वर्षधर ने रुक्मि राजा से राझ जोड़कर मस्तक पर हाथ घुमाकर अंजलिबद्ध होकर कहा - 'हे स्वामिन् ! एक बार मैं आपके दूत के रूप में मिथिला गया था । मैंने वहाँ कुंभ राजा की पुत्र और प्रभावती देवी की आत्मजा विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली का स्नान
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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