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________________ १३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद प्रतिमा में से ऐसी-मृत कलेवर की गन्ध के समान दुर्गन्ध निकलती थी? नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं, उससे भी अधिक अनिष्ट, अधिक अकमनीय, अधिक अप्रिय, अधिक अमनोरम और उससे भी अधिक अनिष्ट गन्ध उत्पन्न होती थी । [८६] उस काल और उस समय में कौशल नामक देश था । उसमें साकेत नामक नगर था । उस नगर से ईशान दिशा में एक नागगृह था । वह प्रधान था, सत्य था उसकी सेवा सफल होती था और वह देवाधिष्ठित था । उस साकेत नगर में प्रतिबुद्धि नामक इक्ष्वाकुवंश का राजा निवास करता था । पद्मावती उसकी पटरानी थी, सुबुद्धि अमात्य था, जो साम, दंड, भेद और उपप्रदान नीतियों में कुशल था यावत् राज्यधुरा की चिन्ता करनेवाला था, राज्य का संचालन करता था । किसी समय एक बार पद्मावती देवी की नागपूजा का उत्सव आया । तब पद्मावती देवी नागपूजा का उत्सव आया जानकर प्रतिबुद्धि राजा के पास गई । दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को एकत्र करके, मस्तक पर अंजलि करके बोली'स्वामिन् ! कल मुझे नागपूजा करनी है । अतएव आपकी अनुमति पाकर मैं नागपूजा करने के लिए जाना चाहती हूँ । स्वामिन् ! आप भी मेरी नागपूजा में पधारों ।' । तब प्रतिबुद्धि राजा ने पद्मावती देवी की यह बात स्वीकार की । पद्मावती देवा राजा की अनुमति पाकर हर्षित और सन्तुष्ट हुई । उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा'देवानुप्रियो ! कल यहाँ मेरे नागपूजा होगी, सो तुम मालाकारों को बुलाओं और उन्हें इस प्रकार कहो-'निश्चय ही पद्मावती देवी के यहाँ कल नागपूजा होगी । अतएव हे देवानुप्रियों! तुम जल और स्थल में उत्पन्न हुए पांचों रंगों के ताजा फूल नागगृह में ले जाओ और एक श्रीदामकाण्ड बना कर लाओ । तत्पश्चात् जल और स्थल में उत्पन्न होनेवाले पांच वर्षों के फूलों से विविध प्रकार की रचना करके उसे सजाओ । उस रचना में हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मदनशाल और कोकिला के समूह से युक्त तथा ईहामृग, वृषभ, तुरग आदि की रचना वाले चित्र बनाकर महामूल्यवान, महान् जनों के योग्य और विस्तारवाला एक पुष्पमंडप बनाओ । उस पुष्पमंडप के मध्यभाग में एक महान जनों के योग्य और विस्तारवाला श्रीदामकाण्ड उल्लोच पर लटकाओ । लटकाकर पद्मावती देवी की राह देखते-देखते ठहरो ।' तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष इसी प्रकार कार्य करके यावत् पद्मावती की राह देखते हुए नागगृह में ठहरते हैं । तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही साकेत नगर में भीतर और बाहर पानी सींचो, सफाई करो और लिपाई करो । यावत् वे कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाते हैं । तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही लघुकरण से युक्त यावत् रथ को जोड़कर उपस्थित करो ।' तब वे भी उसी प्रकार स्थ उपस्थित करते हैं । तत्पश्चात् पद्मावती देवी अन्तःपुर के अन्दर स्नान करके यावत् । रथ पर आरूढ़ हुई । तत्पश्चात् पद्मावती देवी अपने परिवार से परिवृत होकर साकेत नगर के बीच में होकर निकली । जहाँ पुष्करिणी थी वहाँ आई पुष्करिणी में प्रवेश किया । यावत् अत्यन्त शुचि होकर गीली साड़ी पहनकर वहाँ जो कमल, आदि थे, उन्हें यावत् ग्रहण किया । जहाँ नागगृह था, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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