SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/५/७३ १२३ इस लोक में बहुसंख्यक साधुओं, साध्वियों, श्रावकों और श्राविकाओं के द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, नमनीय, पूजनीय, सत्करणीय और सम्माननीय होगा । कल्याण, मंगल, देव और चैत्य स्वरूप होगा । विनयपूर्वक उपासनीय होगा । परलोक में उसे हाथ, कान एवं नासिका के छेदन के, हृदय तथा वृषणों के उत्पाटन के एवं फाँसी आदि के दुःख नहीं भोगने पड़ेंगे। अनादि अनन्त चातुर्गतिक संसार-कान्तार में उसे परिभ्रमण नहीं करना पड़ेगा । वह सिद्धि प्राप्त करेगा । हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने पाँचवें ज्ञात अध्ययन का यह अर्थ कहा है । उनके कथनानुसार मैं कहता हूँ । अध्ययन-५-का- मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-६-'तुंब') [७४] भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धि को प्राप्त भगवान् महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था । उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था । उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्या ता । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत् जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे । यथायोग्य अवग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । भगवान् को वन्दना करने लिए परिषद् निकली । श्रेणिक राजा भी निकला । भगवान् ने धर्मदेशना दी । उसे सुनकर परिषद् वापिस चली गई । उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार श्रमण भगवान् महावीर से न अधिक दूर और न अधिक समीप स्थान पर रहे हुए यावत् निर्मल उत्तम ध्यान में लीन होकर विचर रहे थे । तत्पश्चात् जिन्हें श्रद्धा उत्पन्न हुई है ऐसे इन्द्रभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर से इश प्रकार प्रश्न किया - "भगवन् ! किस प्रकार जीव शीघ्र ही गुरुता अथवा लघुता को प्राप्त होते है ?' गौतम ! यथानामक, कोई पुरुष एक बड़े, सूखे, छिद्ररहित और अखंडित तुंबे को दर्भ से और कुश से लपेटे और फिर मिट्टी के लेप से लीपे, फिर धूप में रख दे । सूख जाने पर दूसरी बार दर्भ और कुश से लपेटे और मिट्टी से लेप से लीप दे । लीप कर धूप में सूख जाने पर तीसरी बार दर्भ और कुश में लपेटे और लपेट कर मिट्टी का लेप चढ़ा दे । सुखा ले । इसी प्रकार, इसी उपाय से बीच-बीच में दर्भ और कुश से लपेटता जाये, बीच-बीच में लेप चढ़ाता जाये और बीच-बीच में सुखाता जाये, यावत् आठ मिट्टी के लेप तुंबे पर चढ़ावे । फिर उसे अथाह, और अपौरुषिक जल में डाल दिया जाये | तो निश्चय ही हे गौतम ! वह तुंबा मिट्टी के आठ लेपों के कारण गुरुता को प्राप्त होकर, भारी होकर तथा गुरु एवं भारी हुआ ऊपर रहे हुए जल को पार करके नीचे घरती के तलभाग में स्थित हो जाता है । इसी प्रकार हे गौतम ! जीव भी प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से क्रमशः आठ कर्म-प्रकृतियों का उपार्जन करते हैं । उस कर्मप्रकृतियों की गुरुता के कारण, भारी पन के कारण और गुरुता के कारण मृत्यु को प्राप्त होकर, इस पृथ्वी-तल को लांघ कर नीचे नरक-तल में स्थित होते हैं । इस प्रकार गौतम ! जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते है ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy