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________________ १०६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा ___'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और विपुल अशन,पान, खादिम और स्वादिम तैयार करो । तैयार करके उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम को तथा धूप, पुष्प आदि को लेकर जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान है और जहाँ नन्दा पुष्करिणी हैं, वहाँ जाओ । नन्दा पुष्करिणी के समीप स्थूणामंडप तैयार करो । जल सींच कर, झाड़-बुहार कर, लीप कर यावत् बनाओ। यह सब करके हमारी बाट-राह देखना ।' यह सुनकर कौटुम्बिक पुरुष आदेशानुसार कार्य करके यावत् उनकी बाट देखने लगे । तत्पश्चात् सार्थवाहपुत्रों ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर कहा-'शीघ्र ही एक समान खुर और पूंछवाले, एक से चित्रित तीखे सींगों के अग्रभाग वाले, चाँदी की घंटियों वाले, स्वर्णजटित सूत की डोर की नाथ से बंधे हुए तथा नीलकमल की कलंगी से युक्त श्रेष्ठ जवान बैल जिसमें जुते हों, नाना प्रकार की मणियों की, रत्नों की और स्वर्ण की घंटियों के समूह से युक्त तथा श्रेष्ठ लक्षणों वाला रथ ले आओ ।' वे कौटुम्बिक पुरुष आदेशानुसार स्थ उपस्थित करते हैं । तत्पश्चात् उन सार्थवाहपुत्रों ने स्नान किया, यावत् वे रथ पर आरूढ हुए । देवदत्ता गणिका के घर आये । वाहन से नीचे उतरे और देवदत्ता गणिका के घर में प्रविष्ट हए । उस समय देवदत्ता गणिका ने सार्थवाहपुत्रों को आता देखा । वह हृष्ट-तुष्ट होकर आसन से उठी और सात-आठ कदम सामने गई । उसने सार्थवाहपुत्रों से कहा-देवानुप्रिय ! आज्ञा दीजिए, आपके यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ? तत्पश्चात् सार्थवाहपुत्रों ने देवदत्ता गणिका से कहा-'देवानुप्रिय ! हम तुम्हारे साथ सुभूमिभाग नामक उद्यान की श्री का अनुभव करते हुए विचरना चाहते हैं ।' गणिका देवदत्ता ने उस सार्थवाहपुत्रों का यह कथन स्वीकार किया । स्नान किया, मंगलकृत्य किया यावत् लक्ष्मी के समान श्रेष्ठ वेष धारण किया । जहाँ सार्थवाह-पुत्र थे वहाँ आ गई । वे सार्थवाहपुत्र देवदत्ता गणिका के साथ यान पर आरूढ हुए और जहाँ सुभूमिभाग उद्यान था और जहाँ नन्दा पुष्करिणी थी, वहाँ पहुँचे । यान से नीचे उतरे । नंदा पुष्करिणी में अवगाहन किया । जल-मज्जन किया, जल-क्रीड़ा की, स्नान किया और फिर देवदत्ता से साथ बाहर निकले । जहाँ स्थूणामंडप था वहाँ आये । स्थूणामंडप में प्रवेश किया । सब अलंकारों से विभूषित हुए, आश्वस्त हुए, विश्वस्त हुए श्रेष्ठ आसन पर बैठे । देवदत्ता गणिका के साथ उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा धूप, पुष्प, गंध और वस्त्र का उपभोग करते हुए, विशेषरूप से आस्वादन करते हुए, विभाग करते हुए एवं भोगते हुए विचरने लगे । भोजन के पश्चात् देवदत्ता के साथ मनुष्य संबंधी विपुल कामभोद भोगते हुए विचरने लगे । __[५८] तत्पश्चात् वे सार्थवाहपुत्रदिन के पिछले प्रहार में देवदत्ता गणिका के साथ स्थूणामंडप से बाहर निकलकर हाथ में हाथ जालकर, सुभूमिभाग में बने हुए आलिनामक वृक्षों के गृहों में, कदली-गृहों में, लतागृहों में, आसन गृहों मे,प्रेक्षणगृहों में, मंडन करने के गृहों में, मोहन गृहों में, साल वृक्षों के गृहों में, जालीवाले गृहों में तथा पुष्पगृहों में उद्यान की शोभा का अनुभव करते हुए घूमने लगे । [५९] तत्पश्चात् वे सार्थवाहदारक जहाँ मालुकाकच्छ था, वहाँ जाने के लिए प्रवृत्त हुए । तब उस वनमयूरी ने सार्थवाहपुत्रों को आता देखा । वह डर गई और घबरा गई । वह
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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