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________________ ९० - हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र -1 राज्याभिषेक की तैयारी करो ।' इसका समग्र वर्णन शिवभद्र कुमार के राज्याभिषेक के समान यावत्-परम दीर्घायु हो, इष्टजनों से परिवृत होकर सिन्धुसौवीर - प्रमुख सोलह जनपदों, वीतिभयप्रमुख तीन सौ तिरेसठ नगरों और आकरों तथा मुकुटबद्ध महासेनप्रमुख दस राजाओं एवं अन्य अनेक राजाओं, श्रेष्ठियों, कोतवाल आदि पर आधिपत्य करते तथा राज्य का परिपालन करते हुए विचरो'; यों कह कर जय-जय शब्द का प्रयोग किया । इसके पश्चात् केशी कुमार राजा बना । वह महाहिमवान् पर्वत के समान इत्यादि वर्णन युक्त यावत् विचरण करता है । तदनन्तर उदायन राजा ने केशी राजा से दीक्षा ग्रहण करने के विषय में अनुमति प्राप्त की। तब केशी राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और जमाली कुमार के समान नगर को भीतर-बाहर से स्वच्छ कराया और उसी प्रकार यावत् निष्क्रमणाभिषेक की तैयारी करने में लगा दिया । फिर केशी राजा ने अनेक गणनायकों आदि से यावत् परिवृत होकर, उदायन राजा को उत्तम सिंहासन पर पूर्वाभिमुख आसीन किया और एक सौ आठ स्वर्ण कलशों से उनका अभिषेक किया, इत्यादि सब वर्णन जमाली के समान कहना चाहिए, यावत् केशी राजा ने इस प्रकार कहा - 'कहिये, स्वामिन् ! हम आपको क्या दें, क्या अर्पण करें, आपका क्या प्रयोजन है, ?' इस पर उदायन राजा ने केशी राजा से इस प्रकार कहा- देवानुप्रिय ! कुत्रिकापण से हमारे लिए रजोहरण और पात्र मंगवाओ ! इत्यादि, विशेषता इतनी ही है कि प्रियवियोग को दुःसह अनुभव करने वाली रानी पद्मावती ने उनके अग्रकेश ग्रहण किए । तदनन्तर केशी राजा ने दूसरी बार उत्तरदिशा में सिंहासन रखवा कर उदायन राजा का पुनः चाँदी के और सोने के कलशों से अभिषेक किया, इत्यादि शेष वर्णन जमाली के समान, यावत् वह शिविका में बैठ गए । इसी प्रका धायमाता के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि यहाँ पद्मावती रानी हंसलक्षण वाले एक पट्टाम्बर को लेकर बैठी । शेष वर्णन जमाली के वर्णनानुसार है, यावत् वह उदायन राजा शिविका से नीचे उतरा और जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उनके समीप आया, भगवान् को तीन बार वन्दना - नमस्कार कर ईशानकोण में गया । वहाँ उसने स्वयमेव आभूषण, माला, और अलंकार उतारे इत्यादि पूर्ववत् । उन को पद्मावती देवी ने रख लिया । यावत् वह बोली- 'स्वामिन् ! संयम में प्रयत्नशील रहें, यावत् प्रमाद न करें' कह कर केशी राजा और पद्मावती रानी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना - नमस्कार किया और अपने स्थान को वापस चले गए । इसके पश्चात् उदायन राजा ने स्वयं पंचमुष्टिक लोच किया । शेष वृत्तान्त ऋषभदत्त के अनुसार यावत् सर्वदुःखों से रहित हो गए । [५८८] तत्पश्चात् किसी दिन रात्रि के पिछले पहर में कुटुम्ब जागरण करते हुए अभीचिकुमार के मन में इस प्रकार का विचार यावत् उत्पन्न हुआ - 'मैं उदायन राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज हूँ । फिर भी उदायन राजा ने मुझे छोड़कर अपने भानजे केशीकुमार को राजसिंहासन पर स्थापित करके श्रमण भगवान् महावीर के पास यावत् प्रव्रज्या ग्रहण की है ।' इस प्रकार के इस महान् अप्रतीति-रूप मनो- मानसिक दुःख से अभिभूत बना हुआ अभीचि कुमार अपने अन्तःपुर- परिवार सहित अपने भाण्डमात्रोपकरण को लेकर वीतिभय नगर से निकल गया और अनुक्रम से गमन करता और ग्रामानुग्राम चलता हुआ चम्पा नगरी में कूणिक राजा के पास पहुँचा । कूणिक राजा से मिलकर उसका आश्रय ग्रहण करके रहने लगा । यहाँ भी वह विपुल भोग- सामग्री से सम्पन्न हो गया । उस समय अभीचि कुमार श्रमणोपासक बना । वह
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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