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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद हाति वाले हैं, किन्तु वे उनकी तरह अल्पक्रुद्धि वाले और अल्पद्युति वाले नहीं हैं । छठी तमः प्रभानरकपृथ्वी के नारकावास पांचवीं धूमप्रभानरकपृथ्वी के नारकावासों से महत्तर, महाविस्तीर्ण, महान् अवकाश वाले, महान् रिक्त स्थान वाले हैं । वे पंचम नरकपृथ्वी के नारकावासों की तरह महाप्रवेश वाले, आकीर्ण, व्याकुलतायुक्त एवं विशाल नहीं हैं । छठी पृथ्वी के नारकावासों के नैरयिक पांचवीं धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव तथा महावेदना वाले हैं । उनकी तरह वे अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पाश्र्व एवं अल्पवेदना वाले नहीं हैं तथा वे उनसे अल्पक्रुद्धि वाले और अल्पद्युति वाले हैं, किन्तु महान्कृद्धि वाले और महाद्युति वाले नहीं हैं । ८० पांचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नारकावास कहे गए हैं । इसी प्रकार जैसे छठी तमः प्रभापृथ्वी के विषय में परस्पर तारतम्य बताया, वैसे सातों नरकपृथ्वीयों के विषय के परस्पर तारतम्य, यावत् रत्नप्रभा तक कहना चाहिए, वह पाठ यावत् शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक, रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाऋद्धि और महाद्युति वाले नहीं हैं । वे उनकी अपेक्षा अल्पऋद्धि और अल्पद्युति वाले हैं, (यहाँ तक) कहना चाहिए । [ ५७० ] भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक ( वहाँ की) पृथ्वी के स्पर्श का कैसा अनुभव करते रहते हैं ? गौतम ! अनिष्ट यावत् मन के प्रतिकूल स्पर्श का अनुभव करते रहते हैं । इसी प्रकार यावत् अधः सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों द्वारा पृथ्वीकाय के स्पर्शानुभव के विषय में कहना । इसी प्रकार अप्कायिक के स्पर्श का ( अनुभव करते हुए रहते हैं ।) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक स्पर्श (के विषय में भी कहना चाहिए ।) [५७१] भगवन् ! क्या यह रत्नप्रभापृथ्वी, द्वितीय शर्कराप्रभापृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में सबसे मोटी और चारों ओर सबसे छोटी है ? (हाँ, गौतम !) इसी प्रकार है । ( शेष सब वर्णन ) जीवाभिगमसूत्र के दूसरे नैरयिक उद्देशक में ( अनुसार कहना चाहिए ।) [५७२] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नारकावासों के परिपार्श्व में जो पृथ्वीकायिक ( यावत् वनस्पतिकायिक जीव हैं, क्या वे महाकर्म, महाक्रिया, महा-आश्रव और महावेदना वाले हैं ? ) इत्यादि प्रश्न । (हाँ, गौतम !) हैं, ( इत्यादि पूर्ववत् ) [५७३] भगवन् ! लोक के आयाम का (मध्यभाग) कहाँ कहा गया है ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के आकाशखण्ड के असंख्यातवें भाग का अवगाहन करने पर लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है । भगवन् ! अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ कहा गया है ? गौतम ! चौथी पंकप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है । भगवन् ! ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है ? गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे एवं रिष्ट नामक विमानप्रस्तट में ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्यभाग बताया गया बाद, है । भगवन् ! तिर्यक्लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ बताया गया है ? गौतम ! इस बूद्वीप के मन्दराचल के बहुसम मध्यभाग में इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर वाले और नीचले दोनों क्षुद्रप्रस्तटों में, तिर्यग्लोक के मध्य भाग रूप आठ रुचक- प्रदेश कहे गए हैं, उन (रुचक प्रदेशों) में से ये दश दिशाएँ निकली हैं । यथा- पूर्वदिशा, पूर्व-दक्षिण दिशा इत्यादि, (शेष समग्र वर्णन )
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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