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________________ ३४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद बल राजा की अनुमति लेकर अनेक मणियों और रत्नों से चित्रित भद्रासन से उठी । फिर शीघ्रता और चपलता से रहित यावत् गति से जहाँ अपनी शय्या थी, वहाँ आई और शय्या पर बैठ कर कहने लगी-'मेरा यह उत्तम, प्रधान एवं मंगलमय स्वप्न दूसरे पापस्वप्नों से विनष्ट न हो जाए।' इस प्रकार विचार करके देवगुरुजन-सम्बन्धी प्रशस्त और मंगलरूप धार्मिक कथाओं से स्वप्नजागरिका के रूप में वह जागरण करती हुई बैठी रही । तदनन्तर बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार का आदेश दिया “देवानुप्रियो ! बाहर की उपस्थानशाला को आज शीघ्र ही विशेषरूप से गन्धोदक छिड़क कर शुद्ध करो, स्वच्छ करो, लीप कर सम करो । सुगन्धित और उत्तम पांच वर्ण के फूलों से सुसज्जित करो, उत्तम कालागुरु और कुन्दरुष्क के धूप से यावत् सुगन्धित गुटिका के समान करोकराओ, फिर वहाँ सिंहासन रखो । ये सब कार्य करके यावत् मुझे वापस निवेदन करो ।" तब यह सुन कर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बलराजा का आदेश शिरोधार्य किया और यावत् शीघ्र ही विशेषरूप से बाहर की उपस्थानशाला को यावत् स्वच्छ, शुद्ध, सुगन्धित किया यावत् आदेशानुसार सब कार्य करके राजा से निवेदन किया । इसके पश्चात् बल राजा प्रातःकाल के समय अपनी शय्या से उठे और पादपीठ से नीचे उतरे । फिर वे जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ गए । व्यायामशाला तथा स्नानगृह के कार्य का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जान लेना, यावत् चन्द्रमा के समान प्रिय-दर्शन बन कर वह नृप, स्नानगृह से निकले और जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी वहाँ आए । सिंहासन पर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठे । फिर अपने से ईशानकोण में श्वेतवस्त्र से आच्छादित तथा सरसौं आदि मांगलिक पदार्थों से उपचरित आठ भद्रासन रखवाए । तत्पश्चात् अपने से न अतिदूर और न अतिनिकट अनेक प्रकार के मणिरत्नों से सुशोभित, अत्यधिक दर्शनीय, बहुमूल्य श्रेष्ठ पट्टन में निर्मित सूक्ष्म पट पर सैकड़ों चित्रों की रचना से व्याप्त, ईहामृग, वृषभ आदि के यावत् पद्मलता के चित्र के युक्त एक आभ्यन्तरिक यवनिका लगवाई । (उस पर्दे के अन्दर) अनेक प्रकार के मणिरत्नों से एवं चित्र से रचित विचित्र खोलीवाले, कोमल वस्त्र से आच्छादित, तथा श्वेत वस्त्र चढ़ाया हुआ, अंगों को सुखद स्पर्श वाला तथा सुकोमल गद्दीयुक्त एक भद्रासन रखवा दिया । फिर बल राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें कहा हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही अष्टांग महानिमित्त के सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्न-शास्त्र के पाठकों को बुला लाओ । इस पर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् राजा का आदेश स्वीकार किया और राजा के पास से निकले । फिर वे शीघ्र, चपलता युक्त, त्वरित, उग्र एवं वेग वाली तीव्र गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर जहाँ उन स्वप्नलक्षण-पाठकों के घर थे, वहाँ पहुँचे और उन्हें राजाज्ञा सुनाई । इस प्रकार स्वप्नलक्षणपाठकों को उन्होंने बुलाया । वे स्वप्नलक्षण-पाठक भी बलराजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाए जाने पर अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए । उन्होंने स्नानादि करके यावत् शरीर को अलंकृत किया । फिर वे अपने मस्तक पर सरसों और हरी दूब से मंगल करके अपने-अपने घर से निकले, और जहाँ बलराजा का उत्तम शिखररूप राज्य-प्रासाद था, वहाँ आए । उस उत्तम राजभवन के द्वार पर एकत्रित होकर मिले और जहाँ राजा की बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ सभी मिल कर आए । बलराजा के पास आ कर, उन्होंने हाथ जोड़ कर बलराजा को 'जय हो, विजय हो' आदि शब्दों से बधाया ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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